Monday, August 10, 2009

बाबा

एक है बाबा, उसका ढाबा
चल निकला तो शावा! शावा!
नहीं थी उसकी महिला मित्र,
देखा उसने तब चलचित्र
मन की कुंठा बाहर आई,
हीरोइन को खरी-खरी सुनाई,
कोई न बोला, सुनकर वाह!वाह!
एक है बाबा, उसका ढाबा,
चल निकला तो शावा! शावा!
बाबा ने तब आंख दबाई,
नहीं मिली उसे कोई दवाई
बस पब्लिक की सांस फुलाई
आंख मूंद कर करी कमाई
उस पर खूब ग्यान का दावा
एक है बाबा, उसका ढाबा,
चल निकला तो शावा! शावा!
जितने गे गुंडे मवाली,
सब पर उसने की कव्वाली,
गालों पर तो भी नहीं लाली
अपने गुरु की साख दबा ली
बुरे लगें गिरजा और काबा.
एक है बाबा, उसका ढाबा
चल निकला तो शावा! शावा!
-सुधीर राघव
09-08-09

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