-ओम राघव
आदत गलत पड़ जाए, वह छोड़ी नहीं जाती,
आदत बन जाती स्वभाव, तो छूट न पाती।
कटने लगता कर्म से, आदत गलत राह ले जाती,
नर ने अगर नहीं त्यागा, त नर्क द्वार ले जाती।
गलत राह छोड़, सद् मार्ग पर चलने वाले जाने जाते,
डाकू बहुत रहे सदा अनजाने, महाऋषि ही पहचाने जाते।
पूर्व कर्म त्याग सारे ग्यान चक्षु फिर खुलने लगे सारे.
आत्म तत्व को जाना, आहत पक्षी को देखा वाण लगे।
मानव को तुच्छ समझते थे, हृदय परिवर्तन कर ऋषि बने,
पूर्ण ग्यानी होकर स्वयं, विश्व के ग्यान रूप का आधार बने।
क्षमादान मांगा आखेटक ने, निःसंकोच क्षमा से लाद दिया,
प्रताप तपस्या का देखो, लाखों का जीवन साध्य किया।
उदगार हृदय से निकल पड़े, रामायण सुन्दर ग्रंथ बना,
आदर्शरूप राम का वर्णन कर, कितना सुन्दर तथ्य गुना।
सीता व पुत्र लव-कुश को, पाला बेटी पोते सम,
शस्य-शास्त्र की शिक्षा दे वे रहे नहीं किसी से कम। रामराज सब का समाज, धर्म परायण नर होंगे,
बसुधैव कुटम्बकम, सर मंत्र परायण सब नर होंगे।
महिमा पुण्य धरा की, यह तब ही बन पायेगी,
स्वर्ग से बढ़कर मानव जाति, यह गुण विकसित कर पाएगी।
दोहा
पानी जैसा बुलबुला, मानव का अस्तित्व।
कहां कब चल पड़े, छोड़ के पांचो तत्व।।
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बसुधैव कुटम्बकम, सर मंत्र परायण सब नर होंगे।
ReplyDeleteमहिमा पुण्य धरा की, यह तब ही बन पायेगी,
स्वर्ग से बढ़कर मानव जाति, यह गुण विकसित कर पाएगी।
बहुत सुंदर विचार /