Monday, August 24, 2009

आधुनिक कविता या अकविता

-ओम राघव
पुराना राग लगता बेसुरा, आधुनिक कविता सुनाओ,
पुरानी कविताएं सुन चुके, नया राग अब गुनगुनाओ।
मुस्कराना देख हो चांद मुख, कह डाला था कभी,
मिलन विरह के फेर में, थी बन गई कविता कभी।
मिलन बिछुड़न विरह अब आपका लकता नहीं
था अस्तित्व बाहर भाषता, आज अंतर में वही।
दीखता, क्षण भंगुर, रम अंतर में देता है आनंद वही,
केवल हम सुंदर लगें, वही होता केवल अच्छा नहीं।
वन सम्पदा मरुभूमि समतल लहलहाती भूमि भी
चन्द्र तारे और सूरज अस्तित्वहीन होंगे सभी।
आधुनिक कविता चाहे पात्र आधुनिक देखें,
विकास करती कविता शब्द और अर्थ देखें।
शब्द निःशब्द बने, प्रकृति जीव अविषय बने
भूखे प्यास आत्महत्या दूर हो तभी जीव मानव बने।
उड़ाते मजाक आधुनिक विकास का
बना निर्यात हर शहर नगर गांव कसबे का
लगा बदनुमा दाग सभ्यता के नाम पर
होते हैं करोड़ों अरबों के घपले विकास के नाम पर
विकास हो रहा सिर्फ कागजों पर
रुपया तो पैसा बन पहुंचता निर्दिष्ट स्थान पर
व्यय बजट में प्रावधान का पैसा
हो खर्च वहां जहां के लिए बना बजट
मात्र कुछ माह में ही प्रगति दिखाई देगी
न दिखाई दी जो वर्षों के अन्तराल में
विकासशील देश बने विकसित
राजनीतिग्य संबंधित अधिकारी सुनिश्चित कर सकें यह
कहीं यह स्वप्न रहे न दूर
उस क्षितिज के पार?
दिखाते हैं दिवास्वप्न सब
लेना होता है उनका वोट
जो है कीमती है उनके लिए
सूक्ष्म की स्थूल के प्रति प्रतिक्रिया
किसी भी वस्तु में प्रआम मान व्यक्ति सौन्दर्य
छायावाद कहकर पुकारें
प्राचीनता से मोहभंग राष्ट्रीयता
सामाजिकता धार्मिक चेतना
आदर्शवादी रुख बना द्वेवेदी युगीन
काव्य की संगत संवारें
राष्ट्रप्रेम का स्वर, रूढ़ियों का विखंडन
निर्गुण सगुण भारतेन्दु युगीन कविता कहाये
भोजपुरी, अवधि, मागधी
खड़ी बोली, भाषा ब्रज की अपनाएं
कविता चलती रहेगी, समाज का
मानस विचार ज्यों-ज्यों बदलता रहेगा
तुकांत अतुकांत का दौर भी चलता रहेगा
कहां तक दृष्टि तेरी असीम जिसका भाव हो
रस प्रेम शौर्य संतोष पैदा हो सके
वही कविता बने, चाहे फिर उसे
प्राचीन अर्वाचीन आधुनिक कविता कहो
शब्द घोड़े अर्थ घनेरे
संदेश शिक्षाप्रद बने
वह कविता ही वरदान हो।
(15 अगस्त 09)

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