Friday, September 24, 2010

सहनशक्ति

ओम राघव
परमार्थ के मार्ग में जीव को
उतना बल मिलेगा
सहन शक्ति का शरीर मन में
जितना संबल बनेगा
दुखी लाचार का निष्काम भाव से
जीवन का निर्वाह होगा
कर्म (वैसा) श्रद्धा सहनशक्ति अहंकार
शून्य का वाहक बनेगा
जाति धर्म की खातिर बलिदान करे
आदर का भागी बनेगा
भाईचारा विश्व दृष्टिकोण सर्व सुख की
चाह का आधार होगा
पाप से कलुषित मन सुस्रजन की बात
भला कैसे करेगा
ज्ञानेंद्रियां भी न सहायक आत्मानुभूति
कैसे हो सके
परमपिता परमात्मा विद्यमान मुझ में
और आप में भी
सहन शक्ति से पारम्भ होता
आसान प्रत्याहार भी
सरल राह प्रारंभ
सहनशक्ति से करना पड़ेगा
खुल सकेंगे ज्ञानचक्षु
बाहर भीतर से शुद्ध तो होना पड़ेगा।

(०९-०९-२०१०)

Monday, September 20, 2010

उद्देश्य

ओम राघव
अधिकता ध्यान के अभ्यास से मन वासना शांत होते,
शरीर के निर्वाह के लिए पूर्व अभ्यास ही कारण बनाते
भोगरूपी अंकुर प्रारब्ध रूपी बीज से उत्पन्न होता,
बीज भी काल कर्म से शक्तिहीन होकर नष्ट होता।
मन और वासना जब नष्ट हो न शरीर संयोग रह पाता
स्वतः देह यात्रा का निर्वाह सुषुप्ति का आभास भर देता।
अंतःकरण समाधिस्थ होकर अल्प जगत व्यवहार रह पाता,
अविचल स्थिति बनकर विचार प्रकृष्टता से सुलभ होता
ज्ञानी उत्तम मध्यम जिसको ज्ञान, न जानना कुछ शेष रहता
जीवन में विचार शक्ति संगति और अच्छी शिक्षा का प्रभाव होता
सुखी रहे सर्वदा जानना जीव का यही उद्देश्य रहता।
(३-०९-१०)

Tuesday, September 7, 2010

नजरिया

ओम राघव
हर वस्तु घटना को देखने का कैसा नजरिया?
एक भौतिक दूसरा आध्यात्मिक होता है जरिया।
अहम से भरा एक, अहम से शून्य दूसरी प्रक्रिया
मैं भौतिकवादी और वह बनता वेदान्ती नजरिया।
कर्ता सर्वदा एक है, वह परम-आत्मा की क्रिया
जगत की रचना और चलाना, कृतित्व बनता नजरिया।


पाप बड़ा माने स्वयं को कर्ता का नजरिया
सफलता असफलता यश अपयश, कर्ता नहीं ऐसा नजरिया।
अहम हो जाए विलीन, परमात्मा अद्वैत का बनता नजरिया।
शुद्ध अशुद्ध सम्मिश्रण भ्रम ब्रह्मांड का नजरिया
परम शुद्ध पुरुष एक से अनेकता का खेल दिखाता नजरिया,
शऱीर और मन का स्तर छो़ड़, बन आत्मस्तर का नजरिया।
(२५-०८-२०१०)

Sunday, September 5, 2010

अवस्थाएं

ओम राघव
जागृति मुख्य भाग है सम्पूर्ण जीवन का
मन-वाचा-कर्मणा में उसका मौन रहता
स्वप्नावस्था में देखा सभी सत्य लगता
जाग्रति में सभी मिथ्या का आभाष देता
जाग्रति अवस्था भी दीर्घ स्वप्न मात्र होती
उपरोक्त अवस्था वेदान्त से अयाथार्थ होती
अवचेतन और अचेतन मदारी मन के बने
जिन्दगी को खिलाते खेल स्वप्नवस्था ही बने
जाग्रत व स्वप्नावस्था में मेल जीव गर कर गया
तभी वह प्रमाणिक और ईमानदार बन गया
सुषुप्ति में मन पूरी तरह निश्चेष्ट हो जाता
अहम-अविद्या शेष रह विकार रहित आत्मा
सुषुप्ति चेतन ध्यान बन जाते
गाढ़ी निद्रा में विचार न स्वप्न रह जाते
अहम अविद्या विद्यमान रह पाते
समाधि में वासनाएं स्वप्न जगत नष्ट हो जाता
लोक का वस्तु जगत भी लोप हो जाता
अविद्या नष्ट होती आनन्द स्रोत उमड़ पड़ता
चैतन्य पूर्ण के समीप पहुंच जीव जाता
अनुभव या चेतना का आधार बन जाती
कहानी जीव की समाधि अवस्था में पूर्ण हो जाती।
१७-०८-२०१०

Thursday, September 2, 2010

शुभाचरण की महक

ओम राघव
जीवन एक पुस्तक बना
पढ़ना है जिसे जिन्दगी भर
भावनाएं विचार बनतीं
कर्म का आधार बनकर
न हो आहत कोई
अपनी जुबान या हथियार से
विचार न करें अहित
पैदा करें आत्मीयता प्यार से
अच्छाई की महक
स्वतः फैल जाती चारों दिशा में
खुशबू फूल की महकती
केवल वायु की दिशा में
हर क्षण अपनी जिन्दगी का
एक तस्वीर है
हर कर्म लिख रहा
हर कर्ता की तकदीर है
देखा न पहले, सो देखना
फिर न दिखा पाये अपने लिए
हर क्षण मोहक सुन्दर बने
सुघड़ जीवन के लिए
फूल की महक
वायु के रुख के साथ चल पाती
शुभ आचरण की महक
जीवन के हर ओर महकती
शक्ति वर्धक अस्त्र हैं
शांत रहा और मुस्काना
समस्याओं का कभी समाधान
बन जाता मुस्कराना
शुभाचरण की महक
सुघड़ जीवन का आधार बन जाती
आधार जीवन का बने शुभ आचरण
आदत ही आधार बन जाती।
(१३-०८-२०१०)