Wednesday, October 6, 2010

ऐसे अनेक रामदेव बाबा चाहिए

ओम राघव
अब नहीं लगते
उबाऊ, भड़काऊ, कुत्सित, अश्लील
आए समाचार दैनिक प्रिंट या इलेक्ट्रानिक मीडिया से
कभी कहते थे
घृणित फूहड़ भड़काऊ अश्लील नैतिकता से परे
आंग्लदेशवासियों के पहनावे को
डूब गए हम कंठ तक कीचड़ में
पर नजर नहीं आती अश्लीलता
अशिष्ठ साहित्य में भी बल्कि कर रहे महिमामंडित
कहकर- समाज का दर्पण है साहित्य
यथार्थवाद की आड़ लेकर
नहीं थकते थे कभी कोसते जिनको
अपने युवा भी बढ़ावा दे रहे
अश्लील चित्रों को देखकर
लांघ गए हैं सभी सीमाएं
सारी तोड़कर आगे जाने का आधुनिक होने का
दावा कर रहे हैं
नई पीढ़ी उन्हीं का साथ देने आ गई है
परिणाम दिनरात ऐसा साहित्य दर्शन पेश करने का बन गया है
आचार उनका सीखते जिनसे वही सिखा रहे हमको जिन्हें हम कोसते थे
उन्होंने भारतीय संस्कृति को सीख करकर लिया सुधार अपना
हम उसका अनुकरण कर रहे हैं
जो छोड़ उन्होंने दिया
क्या हमें छोड़ना आदर्श अपना
नैतिक परंपरा साथ देकर अश्लीलता का अपनी पीढ़ी का कितना
नुकसान हम कर रहे?
पैसा-शौहरत केवल बनी आधार जिनका
वे सब ऐसा करेंगे जिन्हें अपने परिवार
देश मानव जाति का हित बने
ऐसे अनेक रामदेव बाबा चाहिए।
(१३-०९-१०)