Wednesday, July 28, 2010

योग और तप

ओम राघव
चेतना को दिशा-निर्देश और प्रेरणा मिल सके,
जीव की ससीमता ब्रह्म की असीमता में मिल सके
आवश्यक क्रिया-कलाप योग वास्ते यह साधना चाहिए
आत्मा को परमात्मा से जोड़ दे वही योग कहलाए
योग और तप आत्मिक प्रगति के लिए चाहिए
लक्ष्य विहीन साधना मात्र मनोरंजक भटकाव है
उत्पन्न हो उपयुक्त भाव चेतना उत्कट भाव आना चाहिए
जन्म-जन्मान्तरों के संग्रहीत कल्मश
पशु प्रकृति पर पूरा नियंत्रण चाहिए
एकाग्रता तन्मयता भाव-समाधि विचार शून्यता
साध्य सिद्धी का बनते वह आधार चाहिए
भजन ध्यान की आदत स्वभाव में परिणित बनेगी
भजन की आवश्यक्ता आदत भजोन से अधिक चाहिए
सांसारिक प्रेम की लिप्सा भक्ति श्रेयी आकांक्षा बने
प्रवृत्ति पशु स्तरीय छोड़ देव स्तरीय ही चाहिए
निरुद्देश्य जीना हवा के साथ इधर-उधर उड़ते पल हैं
भटकना यत्र-तत्र-सर्वत्र नहीं ऐसा जीवन चाहिए
समीप पहुंचना ब्रह्म के सुनिश्चित मार्ग ही सम्भव
योग और तप करे संभव आधार उनका चाहिए।
०९-०७-10

Saturday, July 24, 2010

कला का कमाल

ओम राघव
नहीं कमी सम्मान देने वालों की
सुन्दर कला का कमाल आना चाहिए।
दूसरों की परीक्षा सारी उम्र कर ली,
परीक्षा अंतःकरण की स्वयं करनी चाहिए।
कभी स्वर्ग कभी नर्क जैसा लगता घर
उसी घर को मधुरता से सजाना चाहिए।
आदतें पक्की हो गईं चाहते सुधारना उनको
छोड़ आशा दूसरों की स्वयं को सुधरना चाहिए।
सुधरें भला वे क्यों कर सीखें किसलिए?
सुधरने का सलीका खुद को आना चाहिए।
भिन्न-भिन्न मानना ईष्ट को भ्रांत कहना दूसरे के धर्म को।
विश्वव्यापी धर्म को आवर्ती होना चाहिए।
विकृत चिंतन से बहुमूल्य शक्ती नष्ट कर ली,
कुसंस्कारों को छोड़कर सुविचरण ही चाहिए।
शरीर सीमा इन्द्रिया मन बुद्धि तक सीमित
मान हो असीम का बनना असीम आना चाहिए।
बुद्धिजीवियों का क्षेत्र अधिकार विचार ही होते
जंजाल सारे टूट जाएं ओम का ही ध्यान होना चाहिए।
(27-06-10)