ओम राघव
चेतना को दिशा-निर्देश और प्रेरणा मिल सके,
जीव की ससीमता ब्रह्म की असीमता में मिल सके
आवश्यक क्रिया-कलाप योग वास्ते यह साधना चाहिए
आत्मा को परमात्मा से जोड़ दे वही योग कहलाए
योग और तप आत्मिक प्रगति के लिए चाहिए
लक्ष्य विहीन साधना मात्र मनोरंजक भटकाव है
उत्पन्न हो उपयुक्त भाव चेतना उत्कट भाव आना चाहिए
जन्म-जन्मान्तरों के संग्रहीत कल्मश
पशु प्रकृति पर पूरा नियंत्रण चाहिए
एकाग्रता तन्मयता भाव-समाधि विचार शून्यता
साध्य सिद्धी का बनते वह आधार चाहिए
भजन ध्यान की आदत स्वभाव में परिणित बनेगी
भजन की आवश्यक्ता आदत भजोन से अधिक चाहिए
सांसारिक प्रेम की लिप्सा भक्ति श्रेयी आकांक्षा बने
प्रवृत्ति पशु स्तरीय छोड़ देव स्तरीय ही चाहिए
निरुद्देश्य जीना हवा के साथ इधर-उधर उड़ते पल हैं
भटकना यत्र-तत्र-सर्वत्र नहीं ऐसा जीवन चाहिए
समीप पहुंचना ब्रह्म के सुनिश्चित मार्ग ही सम्भव
योग और तप करे संभव आधार उनका चाहिए।
०९-०७-10
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment