ओम राघव
नहीं कमी सम्मान देने वालों की
सुन्दर कला का कमाल आना चाहिए।
दूसरों की परीक्षा सारी उम्र कर ली,
परीक्षा अंतःकरण की स्वयं करनी चाहिए।
कभी स्वर्ग कभी नर्क जैसा लगता घर
उसी घर को मधुरता से सजाना चाहिए।
आदतें पक्की हो गईं चाहते सुधारना उनको
छोड़ आशा दूसरों की स्वयं को सुधरना चाहिए।
सुधरें भला वे क्यों कर सीखें किसलिए?
सुधरने का सलीका खुद को आना चाहिए।
भिन्न-भिन्न मानना ईष्ट को भ्रांत कहना दूसरे के धर्म को।
विश्वव्यापी धर्म को आवर्ती होना चाहिए।
विकृत चिंतन से बहुमूल्य शक्ती नष्ट कर ली,
कुसंस्कारों को छोड़कर सुविचरण ही चाहिए।
शरीर सीमा इन्द्रिया मन बुद्धि तक सीमित
मान हो असीम का बनना असीम आना चाहिए।
बुद्धिजीवियों का क्षेत्र अधिकार विचार ही होते
जंजाल सारे टूट जाएं ओम का ही ध्यान होना चाहिए।
(27-06-10)
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aati sunder vyakhya
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