ओम राघव
विचलित व्याकुल कर देने वाले प्रसंग
उद्विग्न कर देते मन को
खोजता मन का संतुलन करता निश्चित दुश्परिणाम
असंगत चिंदन कथन क्रियाकलाप होते
उद्वेग के कारण
लक्ष्य की विस्मृति स्वरूप को न जानना
बनता हमारी विपन्नता का कारण
अवांछनीय आकर्षण संसार का घटना
दूर करता आने वाला अवांछनीय संकट भी
एक क्रम एक गति विश्राम बिना
विशिष्ट शब्दों की सीमित शब्दावली का
जाप निश्चित करता शुभपरिणाम
शांति लक्ष्य और अपने स्वरूप को जानने का
मूर्छित पड़ा अंतर्जगत अनुभव करने लगता
नए जागरण का दिव्य जन्म का
होती उत्पन्न दिव्य उपलव्धियां
निरंतर जाप से
सीमित ग्रहण और धारण शक्ति का
विस्तार होता चमत्कारी कार्य सम्पादन बने।
(१३-०७-२०१०)
saarthak prerak...
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