Monday, August 23, 2010

नीति शास्त्र

ओम राघव
समाज एक स्थल है, प्रगति के क्रम में जीव का,
सृष्टि के आरम्भ में नहीं था समाज
और अंत में भी रहना नहीं
अतः शास्वत नहीं समाज।
विकास के उच्चस्तरों तक जाने का मात्र माध्यम समाज जीव का।
नीतिशास्त्र का क्षेत्र है असीम मनुष्य
आगे जाना है, जिसे भौतिक जगत से
नीतिशास्त्र बनता साधन पाने को साध्य जीव का।
भौतिक जगत चाहे कितना भी लगे आनन्ददायक
और उद्देश्य प्रकृति ही केवल नहीं है।
उससे ऊपर ऊठे मनुष्य यही प्रयत्न ही
बनाता उसको मनुष्य और उसकी मनुष्यता।
वाह्य प्रकृति आंतरिक दोनों से ही उठना है ऊपर उसे
भव्य है समाज की सुन्दरता के लिए जीतली वाह्य प्रकृति
पर अनंत गुना श्रेष्ठ है जीतना आंतरिक प्रकृति का
कलुषित कुत्सित मनोवेग इच्छाएं भावनाएं जीतना जिनका
करता सहायता सदैव इसमें नीतिशास्त्र है।
(२७-७-२०१०)

3 comments:

  1. कलुषित कुत्सित मनोवेग इच्छाएं भावनाएं जीतना जिनका
    करता सहायता सदैव इसमें नीतिशास्त्र है।

    बढिया विचारयुक्‍त रचना .. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!

    ReplyDelete
  2. बहुत बढ़िया


    रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ.

    ReplyDelete
  3. नीतिशास्त्र का क्षेत्र है असीम मनुष्य
    आगे जाना है, जिसे भौतिक जगत से
    नीतिशास्त्र बनता साधन पाने को साध्य जीव का।

    ATI SUNDER VICHAR

    ReplyDelete