ओम राघव
समाज एक स्थल है, प्रगति के क्रम में जीव का,
सृष्टि के आरम्भ में नहीं था समाज
और अंत में भी रहना नहीं
अतः शास्वत नहीं समाज।
विकास के उच्चस्तरों तक जाने का मात्र माध्यम समाज जीव का।
नीतिशास्त्र का क्षेत्र है असीम मनुष्य
आगे जाना है, जिसे भौतिक जगत से
नीतिशास्त्र बनता साधन पाने को साध्य जीव का।
भौतिक जगत चाहे कितना भी लगे आनन्ददायक
और उद्देश्य प्रकृति ही केवल नहीं है।
उससे ऊपर ऊठे मनुष्य यही प्रयत्न ही
बनाता उसको मनुष्य और उसकी मनुष्यता।
वाह्य प्रकृति आंतरिक दोनों से ही उठना है ऊपर उसे
भव्य है समाज की सुन्दरता के लिए जीतली वाह्य प्रकृति
पर अनंत गुना श्रेष्ठ है जीतना आंतरिक प्रकृति का
कलुषित कुत्सित मनोवेग इच्छाएं भावनाएं जीतना जिनका
करता सहायता सदैव इसमें नीतिशास्त्र है।
(२७-७-२०१०)
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कलुषित कुत्सित मनोवेग इच्छाएं भावनाएं जीतना जिनका
ReplyDeleteकरता सहायता सदैव इसमें नीतिशास्त्र है।
बढिया विचारयुक्त रचना .. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteरक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ.
नीतिशास्त्र का क्षेत्र है असीम मनुष्य
ReplyDeleteआगे जाना है, जिसे भौतिक जगत से
नीतिशास्त्र बनता साधन पाने को साध्य जीव का।
ATI SUNDER VICHAR