Saturday, August 21, 2010

असली घर

ओम राघव
केवल कर्मों का यह खेत है वर्तमान घर,
विगत जन्मों के कर्मों का चुकता हिसाब करने
आये यहां, पर यह संसार अपना असली घर नहीं,
कोई भी वस्तु दुनिया की नहीं हमारे साथ जाएगी
भले ही लगा दें उसे पाने में अपनी सारी जिन्दगी।
मन सोचता रहता कुछ और ही बदल दे सोच
लड़ना पड़ता सदैव उससे मानसिक रूप में भी।
आसान तभी हो सके राह असली घर की,
जिसने जन्म दिया निरन्तर सुमिरन उसी का।
ना मांगे तुच्छ वस्तुएं संसार की,
अविश्वास करते उससे मांग कर।
हमारी जिन्दगी-जीविका की चिन्ता उसे हमसे अधिक
अविश्वास की बात क्यों कर फिर करें।
मन स्थिर हो सके यह जीवन का संघर्ष है,
मन न भटका सके दुनियावी चमक में जीव को,
कब से ढो रहे स्वकर्मों का ही भार सब
तोड़नी पड़ेगी परतें सभी कुसंस्कार-संस्कार की भी,
बीते अनेक युग, असली घर को छोड़कर
जीव जीवन का सारा सार है-
घर असली अपना मिल सके।।
(२१-०७-२०१०)

1 comment:

  1. सार्थक चिंतन...
    यह याद रहे हमेशा ,तो फिर बात ही क्या...

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