ओम राघव
जागृति मुख्य भाग है सम्पूर्ण जीवन का
मन-वाचा-कर्मणा में उसका मौन रहता
स्वप्नावस्था में देखा सभी सत्य लगता
जाग्रति में सभी मिथ्या का आभाष देता
जाग्रति अवस्था भी दीर्घ स्वप्न मात्र होती
उपरोक्त अवस्था वेदान्त से अयाथार्थ होती
अवचेतन और अचेतन मदारी मन के बने
जिन्दगी को खिलाते खेल स्वप्नवस्था ही बने
जाग्रत व स्वप्नावस्था में मेल जीव गर कर गया
तभी वह प्रमाणिक और ईमानदार बन गया
सुषुप्ति में मन पूरी तरह निश्चेष्ट हो जाता
अहम-अविद्या शेष रह विकार रहित आत्मा
सुषुप्ति चेतन ध्यान बन जाते
गाढ़ी निद्रा में विचार न स्वप्न रह जाते
अहम अविद्या विद्यमान रह पाते
समाधि में वासनाएं स्वप्न जगत नष्ट हो जाता
लोक का वस्तु जगत भी लोप हो जाता
अविद्या नष्ट होती आनन्द स्रोत उमड़ पड़ता
चैतन्य पूर्ण के समीप पहुंच जीव जाता
अनुभव या चेतना का आधार बन जाती
कहानी जीव की समाधि अवस्था में पूर्ण हो जाती।
१७-०८-२०१०
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avasthaon ka sunder varnan
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति। शुभकामनायें
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