Monday, August 3, 2009

विचार

-ओम राघव
जहॉं भी देखें-सुनें, क्रोध-काम का गरल दिखाई दे,
दुख जीवों का बांट सके, वह दीन न कहीं दिखाई दे,।
वर्गों में बंटे इस विश्व का ढांचा बिगड़ रहा है
पैदा कर उन्माद विश्व की बाहं मरोड़ रहा है।
अर्थहीन- अर्थवान का कैसे हो सामंजस्य
दो किनारे एक नदी के मिलें न कभी सहर्ष।
किसी समस्या का हल हमेशा होता युद्ध नहीं,
एक डोर से बांधे हरजन, ऐसा क्रोध नहीं है।
बांधेगी केवल प्रेमडोर, इस सारी बसुधा को,
तभी मानव कर पायेगा, सार्थक निज जीवन को।
एक-दूसरे की पीड़ा जब तक स्वयं को कष्ट न देगी,
व्यापक तत्व आत्मा की दृष्टि तब तक नहीं होगी।
कष्ट सहे जीव मन दुखी रहे, कोई न दिखाई देता,
सत्य यही अपना न कोई, परिहास दिखाई देता।
शरीर मिला जिस हेतु तुझे, उसे निभाना भूल गया,
चक्कर में मन-माया के पड़, बुरी तरह से डूब गया।
संकेत आए पर ध्यान नहीं, बालों को काला करा लिया,
नव जीवन के भ्रम में पड़ कर, कृत्रिम दांतों को चढ़ा लिया।
जगह न कोई समय नहीं, रोके मौत के तांडव को
काल का हर क्षण अपनाता है, कब धक्का दे नराधम को।।
दोहा
गांव-शहर गलियां-स्वजन, कभी मिलें फिर नाय।
जीवन यह अनमोल है, मत गप-शप में निपटाय।।

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