हमें मिले पीएम इन वेटिंग
जिनकी नहीं बची है रेटिंग
पार्टी वाले बात न पूछें
बच्चे ही अब उखाड़ें मूछें
मीडिया वाले आस न पालें
कोई अपना घास न डाले
बोले, भइया क्या बतलाऊं
कैसे अपना हाल सुनाऊं
महंगाई बढ़ती जाती है
भाव सुन फटती छाती है
शर्म नहीं पीएम को आती
रोटी संग अब दाल न आती
सब्जी की तो पूंछो मत ना
घी-दूध हुआ अब सपना
अगर पीएम हमको बनवाते
इतना तो न दुख उठाते।
उनकी सुन पप्पू मुसकाया
झट निकल कर बाहर आया
ऐसा था तो पहले कहते
तब घाटे में काहे रहते
तब हिन्दू-हिन्दू चिल्लाये
आम आदमी की सुध नाय
मंदिर तब इकलौता मुद्दा था
महंगाई में जीव फंसा था
अब बहुतेरे रंग मत बदलो
बुढ़ापे में एक प्रण लो
भला-बुरा पहले विचारो
और एक राह अपना लो
मजहब, धर्म ईमान की बातें
गीता और कुरान की आयतें
सब पवित्र हैं, कैसा भेद
मनवता को मत इन से छेद
आओ करें विकास की बातें
एक अरब की सुख सोगातें।
-सुधीर राघव
11-08-09
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bahut hi sunder aur sarthak kavita
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