बीती बातों को भूलो, अब आगे की अच्छी सोचो,
भला हो मानव जाति का, ऐसी युक्ति की सोचो।
हों दो अरब हाथ, उस देश को करना क्या मुश्किल?
प्रचुर भंडार शक्ति का, उस देश को करना क्या मुश्किल?
योजनाएं अब ऐसी हों, हर हाथ जिनसे काम मिले,
खाली हों हाथ जहां इतने, अपराध भला क्यों न हों?
योजना अभी ऐसी बनी नहीं, खुशहाली नहीं आ पायी,
अपनी संस्कृति भी भूल गए, उल्टे तंगहाली आई।
नेता, विग्यानी, पूंजीपति, बुद्धिजीवी व युवावर्ग,
रवैया हो सहयोगपूर्ण, योजना बनाएं बिना फर्क।
कृषि कारखाने आदि का, ऐसे सुधार किया जाए,
निरंतर समाज प्रगति पर, बेरोजगार न कोई रह पाये।
समय अधिक अब बचा नहीं, जलती मही पर बैठे हैं
लोभ-क्रोध ऐश्वर्य के बल, बड़े गर्व से ऐंठे हैं।
जिन बातों व कार्यों से, है लगता कष्ट तुम्हे भारी,
अपने पर अंकुश लगा सकें, सुख पाये मानवता सारी।
उल्टा देते कष्ट दूसरों को, खुश हम फिर हो जाते हैं,
आवाज न आत्म की सुनकर, मनभावन करते जाते हैं।
आशा करते जगत पुरुष, ऐसा निष्कर्ष निकालेंगे,
गरल-सिन्धु में डूबी मानवता, उसे कुछ भान दिलावेंगे।
परमात्मा दे सद्बुद्धि हमें, मन रहे सदा परहित में,
कोई जीवन कभी कष्ट पावे, हिलमिल जीएं मरें पर हित में।
दोहा
बीते दुर्गुण भूल जा, मतकर उनकी याद।
अब पर हित होवे सदा, कर प्रभु से फरियाद।।
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बहुत अच्छी कविता है
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