-ओम राघव
जहां भी देखें और सुनें, भ्रष्टाचार दिखाई देता,
आदर्शों का शिरोमणि देश, पतित दिखाई देता।
आपाधापी दिन-रात लगी, है मृषित जनता सारी,
दुर्भाव न जब-तक बदलेंगे, दुख पाये मानवता सारी।
जो बोना वही काटना है, सत्य सनातन सत्य है ये,
आप्त वचन ये ऋषियों के, हर समय हर जगह सत्य है ये।
समाज के ये नेता, मन से तन से शुभकर्मा न बन पाये,
दृष्टि भविष्य को देखती है, विकराल रूप रख कर आए।
चक्रवात, भूकम्प आदि विश्व को दुखी कर डालेंगे,
सृष्टि की इति के आयुध बना लिए, ये भष्म कर डालेंगे।
चित्र भयाभय यह कितना, समझ में न यह आ सकता,
लोभ-ईर्ष्या कहां छोड़ेंगे, क्या कुछ नहीं फिर हो सकता।
इस तरह अति हो जाती है, परिणाम भयानक होता है,
सोचो शुभ भला कर, परिणाम सुखद ही होता है।
अति से पहले अच्छा है, हम सब लोग सुधर जाएं,
आदर्श राम-बुद्ध नानक के, जगत पुरुष सब अपनाएं।
शंकर, कबीर, महावीर, नरेन्द्र व ऋषिवर दयानन्द,
रविदास आदि संतों के कर्म पैदा करते हैं आनन्द।
जो भटके आदर्शों से, उन्हें मार्ग पर लाना होगा,
नेता ही जिम्मेदार नहीं, सबमें सुधार लाना होगा।
विग्यान जनित योजना बना, तन-मन से कोशिश करते,
आरूढ़ होते प्रकृति पथ पर, सम्पन्न और हर्षित होते।
Tuesday, August 4, 2009
उद्बोधन-2
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
bahut hi sundar likha
ReplyDelete