-ओम राघव
संस्कार प्रभाव बदलता है निरंतर,
कलात्मक-सौन्दर्य की ओर होता अग्रसर।
कहते कुछ साम्राज्य विरोधी, जगरण है,
यथार्थ के निकट है, मूल्य हीनता ही आवरण है।
संस्कृति पूर्व की निष्ठा न मानो, आधुनिक कहलाओ,
न समझो प्रकृति न ब्रह्म माने, प्रगतिशील कहलाओ।
माने ब्रह्म सर्वोच्च हम पिछड़ते हैं,
अविकिसत बना देश, जकारण इसे मानते हैं।
भविष्य के गर्त में क्या छिपा किसको पता,
जान लें पहेली, यह आवश्कयक नहीं रहा।
भविष्य का क्या सोच, वर्तमान का ध्यान हो,
आधार भविष्य का निश्चय यह जान लो।
वर्तमान को जानलें, भूत को समझना आसान है,
भूत कारण इसका, भविष्य का अवसान है।
मूल्य हीनता आधुनिकता का मूल्य है,
मानदंड ही श्रेष्ठता का, साहित्यक मूल्य है।
साहित्य मूल्य खो रचना किधर जार ही,
गर्व आधुनिकता का मूल्य सारे खो रही।
यथार्थ हो आदर्श मंडित, समाज सुमार्ग पर चले,
साहित्य रचना इस तरह, प्रेरणा दायक बने।
सबकुछ खत्म हो न सबको जोड़ पाये,
परम्परा की बात अच्छी, व न मिटने से मिटाए।
अंध विश्वास परम्पराएं, गलत सब टूट जाएं,
विभिन्नता विचारों की वेशक मिट न पाये।
तथ्य सहित देना विवरण, सभी का अधिकार है,
सर्व हारा नारि शक्ति, विवेचन का आधार है।
स्वतंत्रता का अर्थ दूसरा आहत न हो,
स्वत्व जो अन्य का, उसकी कभी चाहत न हो।
साहित्य व कर्म वह, जो मन से मन जोड़ दे,
आधुनिकता वह ही बने, कर्मठ प्रगति में मोड़ दे।
दोहा
शुभ विचार और कर्म से हो सब प्रगतिवान।
सच्ची आधुनिकता बने लें इसको पहंचान।।
(23-03-02)
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