Sunday, July 19, 2009

प्रसन्नता

-ओम राघव

प्रश्न
प्रसन्न कैसे रहें जग में
हर कोई यह चाहता
प्रसन्न रहने का सूत्र
खोज से भी नहीं मिलता
निर्देशित मार्ग होता सीधा
पर वह कभी सीधा न लगता
डिगा है विश्वास, तो श्रद्धा बनेगी कैसे?

उत्तर
लाभ सुख-शांति का है, जिनसे मिलता
अमर फल-प्रसन्नता प्राप्त जिससे
दिखता वह आकाशी फूल है
प्रसन्न हों दूसरे की प्रसन्नता में
बने वह प्रसन्नता का सदमूल है

धकेलते कर्त्तव्य पीछे अधिकार बस चाहते
करे कर्म दूसरा, मिले फल हम चाहते
सोच-निष्कर्मता से, लाभ ही हमको मिलेगा,
सदा के वास्ते ही, अधिकार फल हम को मिलेगा

सदा मिले सुख-लाभ, सोचना ही भूल है,
कर्मनिष्ठ होना कारण प्रसन्नता का मूल है
अब सुख-लाभ क्या? यह अंतर की ही सोच है
सकारात्मक सोच हो, न दुख और सुख शेष है

स्वप्निल संसार में, रहेंगे जब तक,
कलेश तीन हमको सताएंगे,
रस्सी को समझे सर्प, भय का बनेगा भूत
सभी मिलकर हमको डराएंगे

पर्दा सत्य से हटेगा नहीं जब तक
स्वप्निल संसार से ऐसे ही ठगे जाएंगे
सब कुछ धन सम्पन्ति से है मिलता
पर शांति-सुख सम्पदा नहीं मिल पायेगी,

खोजने पर पाओगे-प्रसन्नता के स्वयं स्रोत हो
वह अंतर की बुद्धि-मन, आत्मा दे पायेगी।

(29 सितंबर 2003)

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