-ओम राघव
भाष्कर होगा उदय-अभी देर है
निकल पड़े घर से- चरवाहा मजदूर किसान
चाह पाले खेत करने काम करने
मिले जो भी काम-
घर पुताई या रंगाई, फसल की हो कटाई
कारखाने की सफाई
जो भी काम हो करेगा, दिन के अवसान तक
खेत जोते फसल बोई, कभी अधिक वर्षा
खरपतवार सूखा कभी टिड्डीदल ही खा गया
जमींदार बना पर मजदूर हो गया
न खाने का पूरा पड़ा, लगान देना रह गया
घर से निकला सदा, सूरज से बहुत पहले
नवजात शिशु अनजान-बाप के अस्तित्व से
जंगल की हो कटाई या कारखाने की सफाई
मालिक की रहे सलामत मुटाई
स्वयं लक्कड़ काट काठ बन गया
नहीं बनना चाहता अधिक धरती का बोझ
काम ही नियती बना उसकी
जीवन यापन की भरपाई हो सके
कार्य विनिमय से बस इतना चाहता
बच्चे पल सकें पढ़ सकें
उनके ब्याह चिंता से हो सके मुक्त
इसी को मान लेता परम मुक्ति
जीवन के पार मुक्ति का
उससे कोई सरोकार नहीं
अवसर ही नहीं उससे अधिक सोचने का
उसके निकलने के बाद
निकलता है दिन
कौन निकलता है प्रथम
पता अब चल गया है?
(5 नवंबर 2003)
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this is so good.. say thanks to dadaji..
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