Friday, July 24, 2009

मौन या संवाद से

-ओम राघव
कैसे-किसको पुकारें?
कब-कहां संसार में रह कर
और कैसे संवारें?
मौन से या संवाद से
व्यवधान लगते संवाद से प्रसूत तर्क
मन-इंद्रियों की शक्ति अपनी-मौन ज्यादा
संवाद से संतुष्ट, कुछ असंतुष्ट होते
कैसे हो सके संवाद?
सर्वमान्य फिर
बिना संवाद शून्य है समाज
है तथ्य यह भी नहीं क्या?
साथ मन के संवाद-बने मौन
इन्द्रिय गोचर नहीं, पर वह भी तो संवाद है
यह संसार कल्पित, संवाद से ही होता प्रकट
सुख-दुख-हर्ष-अमर्ष लेकर
मानो वास्तविक लगता और गहरा संसार फिर
आज है भविष्य में ऐसे ही रहेगा?
मन से मौन-संवाद आत्मा से हो
जीव लाखों वर्ष से कर रहा है खोज जिसकी
क्या संभव है सार्थक पुकार?
फिर सोच कैसी?
सोचना ही व्यर्थ जैसे
समझना अनिष्ट या कष्ट का कारक दूसरा (संवाद)
सुख-हर्ष अपना साख दे निज अहंकार को
है जो कल्पित निरा
निज सोच का भाव उसके अनुरूप ही संवाद है?
अंदर से मिले शक्ति मौन से
बाह्य विचारों की बने शून्यता
तब ही लक्ष्य होगा सामने
ये दृश्य संसार कुछ और ही दृश्यमान होगा
पुकार-सत्य का कहना कठिन, सुनना कठिन
न शरीर अपना, न मन अपना, बने सहज स्थिति
आनंदानभूति प्रकट सबकुछ स्वयं हो
आना सफल जीना सफल समाज का
और सफल अंतिम सफर
संवाद से संसार है-समाज है
पर आत्मा की तो मौन ही आवाज है
संवाद करना ही पड़ेगा-दीखते संसार में
मौन होना ही पड़ेगा, सत्य को अगर खोजना है
मौन ही है अंतिम पड़ाव जीव का।
(९ नवंबर २००४)

6 comments:

  1. आपके दादा जी की रचना बहुत पसंद आई. आप एक बेहतरीन सार्थक कार्य कर रहे हैं, बहुत बधाई एवं साधुवाद!!

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  2. वाह संवाद से ही संसार है | अंतिम पडाव है मौन पर उस मौन में छिपे हैं अनगिनत संवाद !!

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  3. http://mypoeticresponse.blogspot.com/2009/07/blog-post_24.html

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  4. हमें बहुत पसंद आई

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  5. आप जो कार्य कर रहे हैं नेक
    उसके लिए लें बधाई अनेक।

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