-ओम राघव
कितन युग आए, बीत गए,
काल-देश में आकर माया ऐसी लिपट गई,
छूटा नहीं देश, ममता ऐसी लिपट गई।
युग-वर्ष सारे जीवन के रीत गए,
महल-हवेली-जमीं देख जायदाद को,
सोना-चांदी, रुपए-पैसे शान को।
इस जड़ माया ने सब जीत लिए,
बाबा-दादी माता-पिता-पुत्र परिवार से,
मोह न बिल्कुल छूटा पर सब छूट गए।
मालिक-परमेश्वर की भक्ति न हो सकी,
मोह-माया से सदा आत्मा ठगी।
रुकावट-मिलने में जड़ चेतन माया हो गए।
सद्पयोग भी न कभी माया का किया,
संतों की संगत नध्यान रब का किया।
केवल दिन-बरस नहीं कई युग ऐसे बीत गए।
(३ नवंबर २००२)
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