Tuesday, July 14, 2009

जड़ माया

-ओम राघव

कितन युग आए, बीत गए,

काल-देश में आकर माया ऐसी लिपट गई,

छूटा नहीं देश, ममता ऐसी लिपट गई।

युग-वर्ष सारे जीवन के रीत गए,

महल-हवेली-जमीं देख जायदाद को,

सोना-चांदी, रुपए-पैसे शान को।

इस जड़ माया ने सब जीत लिए,

बाबा-दादी माता-पिता-पुत्र परिवार से,

मोह न बिल्कुल छूटा पर सब छूट गए।

मालिक-परमेश्वर की भक्ति न हो सकी,

मोह-माया से सदा आत्मा ठगी।

रुकावट-मिलने में जड़ चेतन माया हो गए।

सद्पयोग भी न कभी माया का किया,

संतों की संगत नध्यान रब का किया।

केवल दिन-बरस नहीं कई युग ऐसे बीत गए।
(३ नवंबर २००२)

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