-ओम राघव
कभी पास में, कभी दूर ही
अपना नीड़ बना लेती हो
थोड़ी सी भी आहट पाई
चिड़िया तुम झट उड़ लेती हो
प्यार से चुनकर दाना-तुनका
नहीं किसी से तुम लड़ती हो
विश्वास नहीं जग प्राणी का
उड़ होशियारी कर लेती हो
सुन लेती सब जग की बातें
नहीं किसी से कुछ कहती हो
श्रम को करना और खुश रहना
जुगाड़ जीविका कर लेती हो
सूखा वर्षा ओले मानव
शत्रु सारे बने हुए हैं
बचना उनसे कठिन तुम्हारा
जाल सभी ने बुने हुए हैं
प्रात उठ हिलमिल कर चलना
सीखे मानव सिखलाती है
बनकर साथी रहना कैसे?
सारे समाज को बतलाती है
प्रेम प्यार निष्काम भाव से
सब बच्चों को बहलाती है
चिड़िया पक्षी किसी तरह की
चालाकी न दिखलाती है
रोटी-चावल खाए जो प्रेम से डाले
बच्चों का खिलौना भी बन जाती
घर करे निर्माण, कर सामान इक्टठा
कहां-कहां से वह ले आती
खाना-पीना चलना-फिरना
बच्चों को सभी सिखा देती है
करना मेहनत प्रात से छिपते दिन तक
बच्चों को पाठ पढ़ा देती है
केवल अपना ही नहीं
बच्चों का पहले पेट भरेगी
लायक बच्चे नहीं हो जाते
तब तक उनके काम करेगी
सारी जिम्मेदारी मां की
चिड़िया पूरी कर जाती है
प्रकृति मानव के गुण सारे
बच्चों में अपने भर जाती है
अपने समाज की मानव समान
जिम्मेदारी पूरा करती
हटते पीछ कभी न देखा
दुख बच्चों के सारे सहती
अजब करिश्मा यह कुदरत का
घर जंगल सबकी रौनक बन जाती है
प्रकृति को कुछ समझे मानव
चिड़िया मानो बतलाती है।
चिड़िया रंग-बिरंगी कई ढंग की
नीली-पीली लाल-सुनहरी
नाम निराले, आवाज सुरीली
गौरेया तोता और टिटहरी
कौआ चातक सारस बत्तख
बटेर तीतर मोर व गलगल
जिनका है संगीत अनूठा
गाये मानव बिना शोर
केवल मन ही मन।।
(५ जुलाई २००३)
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दादाजी~ वाह वाह जी:)
ReplyDeleteअच्छा प्रयास आभार !
ReplyDeletebahut sundar.narayan narayan
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने! अब तो मैं आपका फोल्लोवेर बन गई हूँ इसलिए आती रहूंगी!
ReplyDeleteबहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
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