-ओम राघव
क्या स्मृति बिगत की कुछ रहती नहीं
फिर कल्पना से मान लें
मिला है शरीर बुद्धि मन स्थान और आत्मा को जान लें-
प्रारब्ध नियति पूर्वकर्म कुछ भी कहो
बिना सोचे क्या जिन्दगी नहीं उम्र भर चलती रही?
और पुण्य व पाप के घट भरती रही -
कब क्यों इच्छित अनिच्छित भोग-भोगे?
दिल-दिमागी चित्र खींचा एक ने
समझने में बड़ा प्यारा लगा
पर व्यवहार में कुछ और देखा
पर दूसरा इन्सान जिसका चरित्र और व्यवहार
आदर्श अनुकरणीय देखा
क्या सोचना?
यह होगा न वह होगा
न सोचा कभी- होता रहा वैसे अधिक
कर्म तो होते रहेंगे दृष्टिकोण अपना या गैर का
गेऱना समझना फेर किसका
समझना क्या आसान?
दोष कहां-फिर और किसका?
अतःएव-
विगत में क्या किया?
मात्र सदकर्म करने में ही ध्यान हो
परिणाम-इदम शरीर स्थान मन बुद्धि कर्म सुख
जो पाया वर्तमान में
वर्तमान आधारशिला भविष्य की
सदकर्म से सदमार्ग
शांतिमिले जीव का निश्चय ही कल्याण हो।
सदकर्म की हो सोच और कर्म कर।
(13 सितंबर 2004)
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वाह यह आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं जो दादाजी रचनाएं उपलब्ध करवा रहे हैं. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
सदकर्म की हो सोच और कर्म कर...सही कहा...
ReplyDeleteAdwet
ReplyDeleteaaj ke jamaane men apne purvajo ke prati yah bhavna kam hi logon men hoti hai...
Badhai ke paatr hain aap...
Rachnayen achchhi hain...bahut hi achchhi...
Aasha karta hun any log bhi aapke kary se prabhavit honge...
बहुत अच्छी रचना है, सत्कर्म का मार्ग सबसे उत्तम है
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteसदकर्म की हो सोच और कर्म कर...
ReplyDeleteसही और सच कहा...आपके दादा जी ने अपनी इस उत्कृष्ट कविता में.
और शायद आपने प्रयास भी प्रारंभ ही कर ही दिया, दादा जी की शानदार रचनाओं से हम ब्लागर से अवगत करने का.
बधाई और बधाई.
और हाँ, अपने दादा जी को मेरा प्रणाम कहना.
परिणाम-इदम शरीर स्थान मन बुद्धि कर्म सुख
ReplyDeleteजो पाया वर्तमान में
वर्तमान आधारशिला भविष्य की
सदकर्म से सदमार्ग
शांतिमिले जीव का निश्चय ही कल्याण हो।
सदकर्म की हो सोच और कर्म कर
बहुत सुन्दर और सार्थक रचना के लिये बधाई
Gaurse aur shantee se is blog ko padhnekee zaroorat hai..tabhi tippanee karungi..!
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ReplyDeleteनिःसँदेह प्रेरणास्पद.. पर, व्यवहारिकता ?