Monday, July 20, 2009

सिरमौर

-ओम राघव
अंतर भरा अभद्र हृदयहीनता से
आदर्श फिर कैसा? नाता धर्म-भीरुता से
करे उग्र बन विस्फोट बम का
या फिर करे संहार जग का
उसे अपना भद्रतायुक्त चेहरा दीखता
बसुधा है सारी कुटुम्ब आदर्श कैसे सीखत?
उसके लिए आदर्श, नैतिकता, किताबी लेख है
आधुनिकता में जो कंटीली मेख है
होता रहे मानव अहित, भला कौन उसे टोकदे,
ताव किसमें है, जो उसका विजय रथ रोकदे,
कुत्सित मन न दे ठहरने भद्रता को
करे न माने, उस पुरानी मान्यता को
छोड़े पहली मान्यताएं तो प्रगतिशील है
तभी बने आधुनिक डाले न उनमें ढील है
परिणाम है उग्रता, बलात्कार भ्रष्टता,
संहार लाखों का भी है फिर शिष्टता
सर्वनाश कर विश्व अपराजेय बनकर
बना धवल-शील कुछ को विजयी पदक देकर
किए निर्माण दिव्य भवन-धन मन से सजाकर
बढ़ा अहंकार, श्रम-धन-बल मिलाकर
स्वतंत्रता के नीड़ में सांस था जिसने लिया
डाल कर बम मेघसम, जोश ठंडा कर दिया
कथित अशांति दूर कर, दूत शांति के बने
देखो, प्रतिफल में जयजयकार हैं सब कर रहे
सप्ताह के तूफान ने परमार्थ सारा कर दिया
अशांति के बबूलों को मानों शांत कर दिया
शंभु पराधीन कर, हुआ नहीं कृतार्थ क्या?
बड़ा प्रतिकार इससे- दान और पुण्य क्य?
मरहम लगे पीड़ितों को दूर हो अभद्रता
मांगे सबसे उदार मन, निःसंकोच सहायता
न आएगी याद बनेंगी अब भव्य कोठियां
बच्चे भाई पति खोये याद केवल रोटियां
बेरोजगारी दूर होगी इससे बड़ा उपचार क्या
काम अब उनको मिलेगा, जिनको न कोई काम था
वह विजयी भी होगा न क्या शांत एक दिन?
करेंगे याद उसकी रचा था उसने इतिहास एक दिन
समाधी पर चढ़ेंगे श्रद्धासुमन, लगें प्रतिवर्ष मेले
कभी कांपता था विश्व सारा जिसका नाम ले ले
कुत्सित हृदय सोचता सब ठीक ही होता रहेगा
बाद जाने के उसे फिर क्या कोई देख लेगा
आत्मा है अमर हर जीव में विराजती
वह क्या समझा सकेगी-बुद्धि न समझना चाहती
दूसरी व्यक्तित्व देखा, शुभ कर्म लीक पर चला
चाहे अपार कष्ट, सारी जिन्दगी सहता रहा।
मिली सत्ता सम्पदा को दूर ही करता रहा,
आदर्श की वेदी पर चढ़ त्याग सब करता रहा
परिवार पत्नी, पुत्र छोड़े व्यवहार मर्यादित किया
लांक्षन लगे तटस्थ रह निज लीक को सार्थक किया
शान्ति भद्रता व्यवहार में आदर्श अवश्य बन गया
मर्यादा में बंधा, सर्वमान्य वह उत्तम पुरुष बन गया।
(3 नवंबर 2003)

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