-ओम राघव
हर जीव से पहले जगी, गीत गाती एक चिड़िया
जागे जगत, जागे प्रकृति, ऐसा मधुर संगीत गाती।
समय से जागें सभी, ग्यान देती,
कैसे समय का ध्यान रखती, पूर्व ऊषा के आगमन से,
मानो हर दिशा को संदेश देती, गर चाल समय संग न चल सके तो
रोना पड़ेगा ता जिंदगी, यह भान देती।
रश्मि का सूर्य से आना,
स्वर्णिम संसार करते, नाम रूप का वरदान देती,
लापता था निविड़ अंधकार में, अब भासता सब कुछ, आह्वान देती।
कुछ अनोखा आज करके बन सके जो लीक ऐसी
पुट नैतिकता का मिला हो, कर्म करना लक्ष्य तेरा
जीव वनस्पति सब को प्राण दान देता सूर्य।
कर्त्तव्य की ओर जगती मुड़े
परिवार, समाज, देश-विश्व का, जिससे भला हो।
कलरव मधुर पक्षियों का, क्या नहीं संदेश देता।
सीख मानव से नहीं लेना चाहते,
पक्षी-प्रकृति से वह ग्यान ले लो
अपने श्रम से जो नहीं मिल सका-
घूमना प्रातः प्रकृति का आनन्द लेना।
समीर विविध का पुलकाय मान करना,
जान वे कैसे सकेंगे, जो करवट बदल सोते रहे,
प्राण वायु का आनन्द, वे कैसे जान पायें भला
तान चादरा जो सोते रहे।
अच्छी सीख जो मान ले, मसझकर उस पर चले
बने सार्थक जन्म-गर स्वयं को सुधारने की ठान ले।
विकार सारे दूर हों, विश्व का कल्याण हो,
स्वयं का ग्यान हो, हर दिन संदेश देता।
प्रातःकाल है।
शान्त रहना, हर वस्तु का नाम-रूप देना,
वनस्पति-जीव को जीवन-दान देना,
बुद्धि, उसकी रंग, फूल-पत्ती, जो जिसके लायक बना।
सुन्दर उदाहरण इससे अधिक, सामाजिकता का कहीं मिल सके
कल्पना से भी परे, सीख कितनी दे रहा
हर रोज वह कह रहा- सीख लो
ऑंख-कान खोलकर, करो आचरण जैसा मैं कर रहा-
नाम प्रातःकाल मेरा, हंसते रहो, मुस्कुराते रहो
प्रातःकाल आता-यह भी सिखाने, हम सीखते कितना?
हम कहीं से किसी से नहीं चाहते कुछ सीखना,
प्रकृति, पशु, चींटी, सिखाते, आहार-विहार,
परिश्रम-कब कैसे करें
प्रमाण उस ब्रह्म का आस्तित्व का।
हमारा अहम आ जाता बीच में,
नहीं हम चाहते फिर सीखना उनसे
सोचते मानव ही है, उत्कृष्ठ नमूना ब्रह्म का
जो नहीं सीखता, बल्कि पालता है,
दम्भ अपने अल्पग्यान का।
(3 नवंबर2002)
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जो नहीं सीखता, बल्कि पालता है,
ReplyDeleteदम्भ अपने अल्पग्यान का
बहुत सही और सुन्दर अभिव्यक्ति है आभार्
हर जीव से पहले जगी, गीत गाती एक चिड़िया
ReplyDeleteजागे जगत, जागे प्रकृति, ऐसा मधुर संगीत गाती।
की हम पशु - पछियों से भी बहुत कुछ सीख सकतें हें
अति सुन्दर