-ओम राघव
विगत जन्मों के संस्कारों का भंडार पड़ा है,
सूक्ष्म शरीर के साथ, युगों से अटा पड़ा है।
संचित कर्मों का भंडार, न ठीक रास्ते चलने देता,
न एकाग्र चित्त ठीक रास्ता बनने देता।
मंजिल को जाने जीव जरूरी यह होता है,
जाना है जिसने मंजिल को, वह हाथ जरूरी होता है।
ग्यानी गुरु दुर्लभ, पथ भटकन का होता है
मार्ग-दर्शक मिलने से, मंजिल भटकन न होता है
कहते राह कठिन गुरु का सहारा न रहा
स्वयं पाना नाह कठिन पता न किनारा कहां रहा।
प्रकाशक तिमिर रास्ते का कभी स्वयं मिल जाता है,
विकसित सुपात्रता होने से कष्ट नहीं रह जाता है।
साथी बच्चे मन-माया के चलते कदमों को रोकते हैं,
कड़वे-मधुर फल जीवन में चलने से बरबस रोकते हैं।
मन-माया का चक्रव्यूह जीव उन्हीं से है ठग जाता,
पग-पग पर जाल बुना हुआ, पथिक अकेला हैं फंस जाता।
कहते हैं स्वयं की कोशिश भी मंजिल को पा सकती है
मंजिल को दूर समझते हो, वह स्वयं पास आ सकती है।
आप पुरुषों ने बतलाया मंजिल कभी दूर नहीं है।
अन्तरतम में खोजोगे, वह अंतर में है दूर नहीं है
स्वयं या सद् गुरु का हाथ सत्य मार्ग मिल जाता है,
तिमिर दूर हो जीवन का, लक्ष्य तभी दिखने लगता है।
लगता है तब पता-जन्म मृत्यु दो वस्तु नहीं है,
पहलू दो एक वस्तु के, पर आपस में भिन्न नहीं हैं।
आत्मा को नहीं कहीं आना या जाना होता है-
जो पैदा होती नहीं उसे कैसे मरना होता है।
आए विराट पुरुष की समझ, ग्यान फिर हो जाता है,
न ऊंचा-नीचा न कोय, बड़ा-छोटा फिर कुछ नहीं होता।
कितन मंडल सौर, न गिनती हो सकती है,
सूर्य चंद्र ग्रह आदि, न दृष्टि पा सकती है।
ग्यानी, विग्यानी लगाकर अपना ग्यान चले गए,
न पाया उसका पार, कह नेति-नेति उस पार चले गए।
हो गया अनन्त प्रभु की, पाना पार आसान नहीं है,
माया का हो ग्यान, वस्तविक ग्यान नहीं है।
परम् प्रभु ही तत्व एक, ब्रह्माण्ड में छाया भर है,
न उससे कुछ भिन्न, नाम रूप माया भर है।
तत्व एक ही जाना-माना, सत्य-सनातन कहलाता है,
समझते ही यह तत्व, न ग्यान पुरातन रह पाता है।
(25 मार्च 2001)
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ईश्वर कि माया को समझना कठिन है
ReplyDeleteishawar tamashbin bhi hota hai ........usaki maya wahi jane ........jindagi bas usi ke hatho ka khel hai...
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