Monday, July 27, 2009

मिलें दादा जी से


दादा जी ओमपाल सिंह राघव का जन्म ३ नबंवर १९३९ को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के गांव मीरपुर-जरारा में हुआ। लेखन की रुचि उन्हें अपने पिताजी से मिली। जमींदार परिवार था मगर पढ़ने-लिखने का शोक पुस्तैनी समझो। इसी शोक के चलते दादा जी ने तीन उपन्यास लिखे। ये रहे-भाग्यविधान, कांच की चूडियां, मेरी लाज। रेलवे में नौकरी के बाद १९९८ में रिटायर हुए। अब हरियाणा के भिवानी के न्यू उत्तम नगर में रहते हैं। रिटायरमेंट के बाद लेखन कार्य फिर शुरू किया, दूसरे दौर का यह कार्य अध्यात्म का पुट लिए हुए है। इस उम्र में भी गांव जाकर खेती-बाड़ी का हिसाब किताब करके आते हैं। लोग बुजुर्गों का सहारा बनते हैं, मगर उनकी कर्मठता के चलते उनके भाइयों और पिता जी व चाचा जी को भी खूब राहत है। नहीं तो यह सब संभालने के लिए उन्हें भागदौड़ करनी पड़े। गत जनवरी में उन्हें एक ब्रेन अटैक हुआ था, एक बार तो लगा कि यादाश्त चली गई है। पीजीआई में इलाज चला। जीवन में नशा न करने और शाकाहारी भोजन की आदत वरदान साबित हुई, उन्होंने इस उम्र में बड़ी तेजी से रिकवरी की। एक माह में ही स्वस्थ्य हो गए। अब भी अकेले सफर कर लेते हैं।
-अद्वैत राघव

3 comments:

  1. बहुत प्रेरक व्यक्तित्व है बहुत बहुत बधाई और उनकी सेहत के लिये शुभकामनायें

    ReplyDelete
  2. वाह बहुत सुन्दर काम किया दादाजी से मिला दिया !! दादाजी को मेरा प्रणाम जरुर पहुंचा देना !!

    ReplyDelete
  3. आपके दादा जी से मिलवाने का आभार. प्रेरक व्यक्तित्व है, मेरा प्रणाम!!

    ReplyDelete