Tuesday, July 21, 2009

अराधना

-ओम राघव
छोड़ मोह-माया को जल्दी, लगजा प्रभु की याद में
रह जाए केवल पक्षतावा, इस जीवन के बाद में
नश्वर ये संसार, छोड़ कर जाना ही होगा
है कई जन्मों का भार, जिसे उठाना ही होगा
हीरे से अधिक कीमती, सांसें खो डालीं
साधन बना शरीर, शीघ्र ही हो जावे खाली
बचपन युवा बुढ़ापा, ऐसे ही खो डाला
दिन खेल-कूद आराम, रात गफलत में सो जाना
बचपन और जवानी खोई, कीमती सांसें भी खोईं
बने उम्र भर कितने रिश्ते, पर रहा नहीं कोई
साधन मिला शरीर, सार्थक है इसको करना
प्रभु की रहे निरंतर याद, रहे फिर कोई डर ना
जीवन यह संसार, स्वप्नवत इसे समझना
है जबतक अग्यान, तभी तक नाटक करना
क्षण-क्षण प्रभु की याद, मंजिल को लाएगी
काम-क्रोध मद-लोभ की भट्टी, नहीं जलाएगी
किसी शब्द से और मंत्र से, प्रभु की याद करो
मंजिल तक पहुंचाएगा, न संशयवाद करो
श्रवण-कीर्तन वंदन, प्रभु का सिमरन करना है
छोड़ सहारा जग का, आत्म समर्पण करना है
आ जाए जब ग्यान, फिर पर्दा नहीं रहे
होवे नाटक का अंत, पात्र का धंधा नहीं रहे
खुले न अंतरचक्षु, तभी तक माया की सूरत
होवे आत्मा का भान, न मन की रहे जरूरत
मन का सारा खेल, निरंतर तरसाता है
बिन प्रभु की याद, जीव का मन घबराता है
( 3 नवंबर 2003)

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