Thursday, April 22, 2010

ध्यान से परिमार्जन

ओम राघव
कई युगों की विस्मृति से उत्पन्न विपन्नता
ध्यान के सहारे ही छूट पाती
विस्मृति को ध्यान स्मृति में बदल देता
परिणाम ध्यान का अनिवार्य
जगाता करिणा और संवेदनशीलता
विस्मृति अपने लक्ष्य की और निज स्वरूप की
उस ओर ध्यान ही ले जा सकेगा
असंगत चिंतन कार्य कलाप
कड़वे अनुभव यंत्रणाएं उत्पन्न करते
मनुष्य सत्ता ढल जाती उसी प्रतिबिम्ब में
निर्भर दैवत्व या रखो असुरत्व के विचार
उथला चिन्तन दुर्बल चिंतन मन स्थित करे
हवा में उड़ रहे तिनके बिखराव ही बिखराव
निर्थक विचार प्रवाह को रोक सकता ध्यान ही
होती ऊर्जा इतनी एकत्र विश्व को चमत्कृत करे

संग्रहीत ध्यान जनित शक्ति का परिणाम हो
आध्यात्मिक ध्यान योग से प्रकट दिव्यशक्तियां
पा सके लक्ष्य जीवन का उत्कृष्ट
ईश्वर स्तर का होता पूर्णत्व को प्राप्त मानव
न रहता कोई अवरोध जीवन का
और न आवागमन का
जिस चक्र में था बना दानव युगों से
०३-०४-२०१०

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