Friday, April 16, 2010

भोग

ओम राघव

संस्कार ताप परिणाम दुख से लिप्त हैं भोग सारे
तामस राजस सात्विक गुणों से युक्त सारे
सभी की वृत्तियों में विरोध विवेकी पुरुष
के लिए बनते दुखरूप सारे
जन्म रोग जरा मृत्यु का न रहे कोई विचार
अभाव अहंकरा का आसक्ति का
घर धन पुत्री स्त्री चेतन व जड़ माया
की न रहे तनिक भी ममता
राग द्वेष से दूर आहार सात्विक और हल्का
संयमित जीवन बुद्धि विशुद्ध से युक्त मन
भोग सारे दीखते सुख रूप
पर सदा दुख के ही हेतु बने।
अंधेरे मार्ग का निष्काम सेवा दीपक बने।

गृहणकर्त्ता सत्य का ही सत्य वादी बने
जिसका पतन कभी होता नहीं
जानक्र सत्य नर नारायण बने
सोचा और जो कुछ किया सारा मन में अवस्थित
संस्कार ही करते कार्य निरंतर साथ सूक्ष्म शरीर के
स्थूल शरीर छोड़ने के बाद भी।
सूक्ष्मभाव से आते स्थूल भाव में
दुहराना फिर उसी का स्मृति तरंगाकार होती पुनः
शृंखला एक चक्र की भांति
अभिव्यक्ति सूक्ष्मभाव की स्थूल के द्वारा
भोग सारे भोगने पड़ते ही उस चक्र में
नष्ट पदार्थ होता नहीं रूपान्तर होता था
देता दिकाई नूतन कुछ भी नहीं
भोग सारे का प्रयोजन
बनेगा चक्र शृंखला तरंगाकार हो
चल पड़ेगी भोगने दूसरी ओर मंजिल।।
(27-03-10

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