Tuesday, April 20, 2010

वाणी

ओम राघव
शीतल जल चन्दन का रस छाया ठंडी पीपल की
आहलादित नहीं करती, जितनी मीठी वाणी हर जन की।
शोक और चिन्ता में डुबाती कटुवचन की गरलता
झूठ बन जाता सहारा करे नष्ट अर्जित महती सम्पता
दुरवचन से क्रोध आमन्त्रण करे अनेक आपदा
डालता उलझनों में सोच से परे मिटें कुल की सम्पदा
मधुर वाणी से अर्जित सुर दुर्लभ असीम शांति सम्पदा
मन के स्तर से ऊंची और भिन्न होती वाणी से आकांक्षा
जीवन के उत्कर्ष और अपकर्ष में है वाणी की शक्ति का योगदान
अहसास होता देख गूंगा - ओजस्वी वक्ता की भिन्नता
मधुर वाणई संवाद परिवार से दूर वाले से रिस्ता बनाता
कठोर वाणी तोड़ देती अपने स्वजनों से भी नाता
कटुवाणी कारण बनी विभिषिका ऐतिहासिक युद्ध का
विनास का कारण परिवार नष्ट हुए कारण क्रोध था
क्रोध के आवेश युद्ध का कारण बनी शक्ति वाणी की
शब्द शत्रु या मित्र बनाते सामर्थ्य अनन्त शुभाशुभ वाणी की
भूख-प्यास नींद जाये चिन्ता का संदेश सुनकर
जनसमूह को उत्तेजित जगाता शब्द एक जुट बनाकर
-प्रभावोत्पादक चेतना तत्व जुड़े शब्द के साथ।
ब्रह्माण को प्रभावित करे है वाणी शक्ति विशाल।
(31-03-10)

No comments:

Post a Comment