Sunday, May 16, 2010

अनुभूतियां

ओम राघव
अनुभूतियों का अहसास होता इंद्रियों से
दृष्टा आत्मसत्ता जिस क्षण होती तिरोहित
इंद्रियां होतीं पर अनुभूति कुछ नहीं होती
माध्यम इंद्रियां बनती मूलतः अनुभूति आत्मा की होती
आस्तित्व बाहर न होता प्रकट अंतर से होती
आवरण देह-मन रूपी संस्कार पिछले
तारतम्य शिक्त पवित्रता का
दृष्टा आत्मा उसी आधार पर प्रज्वलित होती
भिन्नता होती परिमाणगत नहीं प्रकारगत होती
हृदय निर्मल कार्य पवित्र उन्हें उच्चकोटि की अनुभूतियां होतीं
एक छाया मात्र विकृत सत्य का जगत है कुछ भी नहीं
भ्रम से परिचालित दीखता जग है इच्छा जैसी अपनी
आत्मोपलब्धि की बने श्रेष्ठ अनुभूति
चरम है वह सबी प्राप्त अनुभूतियों का।।
(२०-४-२०१०)

1 comment: