Thursday, May 13, 2010

आत्मा

ओम राघव

स्वप्नकाल जैसा है प्रतीयमान दृश्य तो,
काल विद्या राग कला और नियति
जीव को आच्छादित करते
आयु की इयन्ता (काल) कुछ जान सकना (विद्या)
तृष्णा (राग) कुछ कर सकना (कला)
परतंत्रता (नियति)
संयुक्त उपरोक्त से संज्ञा पुरुष बनती
अनादि कर्म-अकर्म की वासना का समूह प्रकृति ठहरती
प्रसूत उनसे फल सुख दुख और मोह
पुरुष रूपी जीव को भरमाते शरीर देकर
भाष्य पदार्थों से रहित भान शक्ति
अधिष्ठत है आत्मा समग्रभाव से
नहीं विषय ज्ञान का स्वयं वही ज्ञान है
ज्ञेय पदार्थों का जैसे ही होने लगता निषेध
होने लगता बोध आत्म तत्व का
चैतन्य ज्ञात का ही परमार्थ स्वरूप है आत्मा
अदीखता, अजर, अमर, ब्रह्मस्वरूप जो भी नाम दो।
अदीखता अजर अमर ब्रह्मस्वरूप जो भी नाम दो।।
(१९-०४-१०)

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