ओम राघव
संसाररूपी बाग में जीव पंछी विचरण कर रहा है,
मौत रूपी बाज रहता निकट उठाने की ताक में
लालची मन बना विषय विकार की लालसा में
मन के बस में प्राण हो गया शैतानी ताकत बना
मन माया दो पाटों के बीच में जीव दाना पिस रहा
घुट रहा दिन रात कीचड़ में राग द्वेष बनकर
हजारों पंछी उड़ गए अपनी-अपनी बोली बोलकर
कार्य संसारी अधूरे छोड़कर तुझे भी जाना पड़ेगा।
मौत आना जन्म लेना अवस्थाएं नरक की
भूल की सत पुत्र था ये देश घऱ तेरा नहीं
असीमित इच्छा बना कर मन बेलगाम
परेशानियों का मूल कारण बन गया।
राग द्वेष की लहरें उठीं मन रूपी तालाब में
चाल अपनी भूल पंछी जाल में फंस गया।
काम क्रोध लोभ मोह शत्रु बलशाली बन गए
हो गए दया दीनता और नम्रता ज्ञान के वाहक बने
दुनियावी बुद्धि कारगर होती नहीं
निर्मल बुद्धि चाहिए
संगत शिक्षा विचार शक्ति अच्छी चाहिए
सांसारिक वस्तु अस्थाई और है नाशवान
सच्चा आनन्द फिर कैसे मिलेगा?
मंजिल दूर पंछी तेरी आशियाना जहां मिलेगा।
(२३-०५-१०)
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बहुत सुंदर अद्वैत...दादा जी की रचनाओं को प्रेषित कर रहे हो...बधाई !
ReplyDeleteaati sunder vichar
ReplyDeletewell done adwet...nice job.....dadaji ki sabhi rachnaayen behtareen hain...badhai.....keep posting.
ReplyDeleteWell done this series girl squirting
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