ओम राघव
मन जमीन पर जमी
पाश्विक कुसंस्कारों की मोटी परत
प्रभु की साधनारूपी खराद से,
उतारनी पड़ती।
बन जाते जीव के संस्कार
प्रयास कर परिचित हो सके
आत्मा परमात्मा से
रसानुभूति का परम आनन्द
उसको मिल सकेगा।
स्वयं है अजरता अमरता का खजाना
वह जान लेगा।
उम्र चाहे जितनी बढ़े,
मन के रंग-ढंग पुराने ही रहेंगे,
संस्कार गर अच्छे न रहे।
परिणाम दुख ताप दुख और संस्कार दुख
विषय भोग के कारण बनें
तीनों गुणों (सत-रज-तम) की वृत्तियों में विरोध होता,
इसलिए सभी भोग ही दुखरूप होते
अशक्ति और अहंकार शून्य चित्त सदा ही सम रहे
अच्छे संस्कार स्वतः ही बन सकेंगे।।
(०९-०६-२०१०)
very nice
ReplyDeletemishrasarovar.blogspot.com
वाह्! बहुत खूब....
ReplyDeletesanskaar ki sundar paribhasha di jo aaj ki jaroorat hai ,sundar .
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