Sunday, June 27, 2010

संस्कार

ओम राघव

मन जमीन पर जमी

पाश्विक कुसंस्कारों की मोटी परत

प्रभु की साधनारूपी खराद से,

उतारनी पड़ती।

बन जाते जीव के संस्कार

प्रयास कर परिचित हो सके

आत्मा परमात्मा से

रसानुभूति का परम आनन्द

उसको मिल सकेगा।

स्वयं है अजरता अमरता का खजाना

वह जान लेगा।

उम्र चाहे जितनी बढ़े,

मन के रंग-ढंग पुराने ही रहेंगे,

संस्कार गर अच्छे न रहे।

परिणाम दुख ताप दुख और संस्कार दुख

विषय भोग के कारण बनें

तीनों गुणों (सत-रज-तम) की वृत्तियों में विरोध होता,

इसलिए सभी भोग ही दुखरूप होते

अशक्ति और अहंकार शून्य चित्त सदा ही सम रहे

अच्छे संस्कार स्वतः ही बन सकेंगे।।
(०९-०६-२०१०)

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