२० जून को आज ही के दिन एक साल पहले गर्मियों की छुट्टियों में मैंनें दादा जी की रचनाओं को इस ब्लाग पर डालने का काम शुरू किया था। यह काम मैंने पापा जी की प्रेरणा से शुरू किया था मगर बाद में मुझे खुद इसमें आनंद आने लगा। पापा जी ने मुझे दादा जी की डायरी थमाई थी और कहा था कि तुम नेट पर गेम खेलते हो, इससे ज्यादा अच्छा है कि यह काम करो। शुरू में कुछ बोझ लगा बाद में मुझे इस काम में मजा आने लगा। एक-एक करके डायरी की सभी रचनाएं पोस्ट कर दीं। जैसे कि मैंने आपको पहले भी बताया है कि मेरे दादा जी भिवानी में रहते हैं और मैं यहां मोहाली में। इसलिए डायरी की सभी रचनाएं खत्म होने के बाद में दादा जी की नई रचनाएं पोस्ट कर रहा हूं। यह नियमित नहीं हैं और देर से मिलती हैं। दादा जी लिखने के बाद दो या तीन की संख्या में मुझे डाक से भेजते हैं, फिर मैं उसे यहां पोस्ट करता हूं। यह एक अच्छा संयोग है कि इस बार २० जून को फादर्स डे भी है। दादा जी की सौ के करीब रचनाएं आज इस पोस्ट पर है। इन्हें तो ब्लागर साथियों ने सराहा ही है पर साथ ही मुझे भी इसे शुरू करने के लिए समय-समय पर अपनी टिप्पणियों के जरिए प्रशंसा और आशीर्वाद दिया है। इसने मेरा उत्साह इतना बढ़ाया है कि अब मैं दादा जी की रचनाओं का इंतजार करता हूं और देर होने पर उनसे फोन पर जल्दी भेजने को कहता हूं। नियमित न होने का बावजूद एक साल में करीब २०० टिप्पणियां और १७ फॉलोअर किसी भी ब्लागर का उत्साह बढ़ाने के लिए काफी है। इसके लिए मैं आप सबका भी धन्यवाद करता हूं।
अद्वैत राघव
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wah wah behetarien...
ReplyDeletelog on http://doctornaresh.blogspot.com/
m sure u will like it !!!
बहुत बढ़िया अद्वैत...एक साल पूरा भी हो गया..बहुत बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ. ऐसे ही दादाजी की रचनाएँ पढ़वाते रहो..दादा जी को प्रणाम..अभी तो स्कूल की छुट्टी में खूब मस्ती हो रही होगी?? :)
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