Tuesday, June 22, 2010

कर्म का प्रतिफल

ओम राघव
सम्पूर्ण समाज की रचना आधारित
संयम नीति संगत भाव पर
सहिष्णुता क्षमा रूपी पाठ नहीं पढ़ा जिसने
कष्टमय जीवन उसे जीना पड़ेगा
क्षमा प्रतिदान नहीं त्याग भी मांगती है
तभी प्यार का सागर हिलोरे मारता।
दंड देना युद्ध अनैतिकता आतंकवाद
असुनी अमानवीय कृत्य हैं
क्षमा से भी सुधार जिनका नहीं होता
जिनकी दृष्टि के मध्य मलिनता का पड़ा गहरा आवरण
लौकिक दुख अनन्त गुना झेले पड़ते
उन्नत सत्य उच्चतर आदर्श जीवन के लिए
व्याख्या जिसकी हो नहीं सकती
विधि का विधान प्रकारान्तर से
प्रतिफल ही है निज कर्म का
जगत है मिथ्या और सत्य का मिश्रण
कितना सीख पाते इस मिलन को
प्रकाश अंधकार, सुख-दुख सत्य-असत्य लगता रहेगा।
कभी दानव कभी देव जान पड़ते
सब न एक हैं और न अनेक हैं
जितन दूर जाओ विचार के रथ पर चढ़कर
सभी माया के आवरण
अभिन्न से भिन्न मानने की भूल ने
कर्म का चक्कर चला दिया
प्रतिफल उसी का हर बार है
अब भोगना पड़ता।।

(०१-०६-२०१०)

1 comment:

  1. कभी दानव कभी देव जान पड़ते
    सब न एक हैं और न अनेक हैं
    जितन दूर जाओ विचार के रथ पर चढ़कर
    सभी माया के आवरण
    अभिन्न से भिन्न मानने की भूल ने
    कर्म का चक्कर चला दिया
    प्रतिफल उसी का हर बार है
    अब भोगना पड़ता।।
    ati sunder vichar ati uttam

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