Wednesday, June 23, 2010

वेदान्त सार

ओम राघव
दृश्य जगत सत्य या मिथ्या?
जीव ब्रह्म से भिन्न अथवा नहीं?
ब्रह्म का स्वरूप क्या? उसकी प्राप्ति का फल क्या?
अद्वैत-द्वैत व विशिष्ट द्वैतवादी
विचारधारा कहो, दर्शन कहो वेदान्त का
ढूंढता उत्तर उपरोक्त प्रश्नावली का।
इन सभी की विवेचना करता वेदान्त दर्शन
द्वैत भाव अविद्या जन्य मिथ्या दृश्य जगत अद्वैतवादी मानते।
जीव की स्वतंत्र सत्ता नहीं, जीव ही ब्रह्म है जानते
निज को सबमें और सबको निजमें पहचानते
यही है जीव की अमरता।
मरणोंपरांत स्वर्ग नहीं जीव की अमरता
मैं तुम प्रत्येक वस्तु ब्रह्माण्ड की
अंश नहीं ब्रह्म का, वरन स्वयं ही ब्रह्म है।
माया देश काल निमित्ति एक परदा व्यवधान स्वयं और ब्रह्म के मध्य में।
भ्रम कृत्रिम सभी असलीयत जिनकी नहीं,
आत्मा ब्रह्म निर्लिप्त एक ही, लेना-देना उसका कुछ नहीं।
व्यवधान इतना जीवन के विस्तार को
देख पाता एक झलक मात्र ही
अनुभव की आंख से यदाकदा
उतना ही गहन और विशाल जीवन का विस्तार
जितना अनन्त ग्रह नक्षत्रों से भरा दीखता नीला गगन
जीव प्रकृति ब्रह्म की भिन्न-भिन्न द्वैतवादी सत्ता मानते।
प्रकृति वाह्य और आंतरिक दोनों जिनके पार स्थित चरम लक्ष्य
आत्मा की परमआत्मा
आत्मा के धर्म नहीं जन्म और मृत्यु देह के ये धर्म केवल।
अज्ञानियों का विषय संसार है अविद्या मात्र
सोया जीव अनादिमाया से घिरा जागता
जान लेता जन्महीन निद्राहीन स्वप्नहीन
वह स्वयं ही अद्वैत ब्रह्म है
मुक्ति नहीं साध्य बल्कि सिद्ध वस्तु है उसके लिए
जगत की सत्ता नहीं ब्रह्म मैं जगत का भ्रम
सार यही अद्वैत-द्वैत वेदान्त का।।
(०७-०६-२०१०)

2 comments:

  1. शुभाषी अद्वैत ,
    आपके दादा जी की रचनाएं बहुत अच्छी हैँ।तुम भी दादा जी की सुंदर रचना हो!
    *
    आप अपने दादा जी का ब्लाग बना कर बहुत अच्छा काम कर रहे हो वत्स ! अपने दादा जी की रचनाएं संकलित कर यहां प्रकाशित कर अपने दादा जी व समाज की अनुपम व अनुकरणीय सेवा कर रहे हो!काश मेरे भी ऐसा बेटा या पौता होता ! जुग जुग जीयो! आगे बढ़ो!यशस्वी भवः!

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