Wednesday, June 9, 2010

विश्वास

ओम राघव
विद्या हुनर और काम
सीखना पड़ता है काबिल गुरु से
शरीरी यात्रा निर्विघ्न हो अन्न-जलादि का संतुलन चाहिए।
उच्चस्तरीय चिंतन बने पदार्थ निज चेष्टा ज्ञान चाहिए।।
शक्ति सागर एक लहरें अनगिनत जैसी शक्तियां
होता भान उनका बन अनेक देवी देवता।
डाली से जुड़े पत्तों की तरह, ईश मूलरूप वृक्षका।।
सूर्य की किरण भिन्न लगती अस्तित्व केवल सूर्य का
प्रतीक साधन ईष्ट की कह सकें प्रथम कला
साधना निराकार की बन जाती उच्च शिक्षा
श्रद्धा विश्वास हो स्थान नहीं तर्क का
परे तर्क से साधन विश्वास से साध्य कक्षा
शक्ति मंत्र की निहित श्रद्धा और विश्वास में
मन की शक्ति बन जाती मंत्र की उस भाव में
विश्वास नहीं करता जो किसी अन्य का
कौन भला अभागा उससे दूसरा होगा।
विश्वास ही परम के निकट ला सकेगा
दिल दिमाग खुलकर प्रकाश अंदर आ सकेगा।।
(३१-०५-२०१०)

2 comments:

  1. विश्वास नहीं करता जो किसी अन्य का
    कौन भला अभागा उससे दूसरा होगा।
    विश्वास ही परम के निकट ला सकेगा
    दिल दिमाग खुलकर प्रकाश अंदर आ सकेगा।।
    bahut rachna hai ,bha gayi.

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  2. प्रभावशाली लेखन।

    (आईये एक आध्यात्मिक लेख पढें .... मैं कौन हूं।)

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