Monday, September 14, 2009

ज्ञात या अज्ञात

-ओम राघव
दीखता अदीखता विश्व ब्रह्मांड
विस्तार उसका अस्तित्व उसका
देखना संभव न हो दूरबीन आंख से भी
मानव ज्ञान पाएगा उसे?
ब्रह्माण्ड कैसा?
और भी अनेक ब्रह्माण्ड नम के द्वार स्थित
जिज्ञासा होती है और भविष्य में होती रहेगी
जाना जितना प्रकृति को लाभ मानव ने उठाया
पूर्ण रूपेण जानना जिसका असम्भव।
रचना जटिल, उसे पढ़ना गुनना कठिन,
क्यों और कैसे बना?
विशाल अणु-परमाणु, तेज या शक्तिशाली पुन्ज को
अनन्त गुना-तेज शक्तिशाली अणु या परमाणु
तेज या शक्तिशाली पुन्ज को
अनन्त गुना-तेज शक्तिशाली अणु या परमाणु,
जो कहो या फिर नाम दो
मानव जान पाया बुद्धि या भौतिक विकास से
जो किया अब तक किया
जाना बहुत कुछ पर रहा शेष अनन्त गुना जानना
बहुत कुछ पाने के बाद कई युगों का अनुभव जुड़ा
जन्म देखें, मृत्यु देखो उसके बाद
हर बार जंजीर में बंधुआ बन युगों की शृंखला
पर क्या शान्त जिग्यासा हुई?
तब फिर कल्पना में खोने लगा
परे दूर बहुत दूर
खोजने का उपक्रम करने लगा
पर शान्ति बना आकाश कुसुम
अशान्ति का ही विस्तार होने लगा
मुड़ चला बाहरी सीमा को छोड़ अंतर की ओर
हार-थक कर
चमत्कार सा होने लगा
समाधान मानो मिल गया
दूर समझा था जिसे
वह अंतर में बैठा मिला
ब्रह्माण्ड का विस्तार भी और सजीव शान्ति।
(१३-०८-०९)

1 comment:

  1. वाह ! क्या बात कही......शाश्वत सत्य तो आखिर सत्य ही रहेगा न.......सब जगह भटक कर फिर आत्मा में ही परमात्मा के दर्शन होंगे और सन्मार्ग पर चल ही शांति मिलेगी.

    इस सुन्दर रचना के लिए साधुवाद.

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