Friday, February 19, 2010

२२ वीं सदी सपने के आइने में (वास्तव में देखा)

ओम राघव
२०वीं सदी की अपनी कुटिया छोड़,
चला गया अपनी निकट की रिस्तेदारी में
फासला दो दहाई मील का
गांव का नक्शा पहले जैसा न था।
थोड़ी सी पहचान ही बची थी
जाना जिससे रिस्तेदार के आवास का पता
निकट से देखा, लोग अजनबी से दिख रहे
मैं भी बना था अजीब जिनके लिए
द्वार से पहले निकट के मामा जी दिखे
पहंचाना गले लग फूट-फूट कर रोने लगे
बोले-लाला, भाई भावज, घर वाले
सब मेरे दुश्मन हो गए, सभी ने नाता कब का तोड़ दिया
श्राद्ध-संस्कार तक न मेरा किया
मैं चौंका यह तो मामाजी की मृत रूह है
लिपट कर जार-जार रो रही थी
कठिनाई से छोड़ उनको बढ़ चला द्वार की ओर
मिल दिल को तसल्ली दे सकूं
बाहर ही गैस का चूल्हा जल रहा था, आगे आंगन में भी वही दृश्य था
और आगे तीसरा चूल्हा जल रहा था
सभी अपने-अपने परिवार के साथ बैठकर वार्तालाप कर रहे थे
दुनिया की खुशहाली अपनी बता खुश हो रहे थे
मुझे पहचानना तो दूर सभी घूरते थे
अनजान की स्पष्ट झलक थी सबके चेहरे पर
लगता था कोई भूत उनके घर पर आ गया है
पहन कर वस्त्र पुराने सौ साल के
चाय-पानी खाना तो दूर पहचान से कर रहे थे इनकार
नाम बुजुर्गों का लिया, जिन्हे मैं जानता था
ढेर स्नेह जीवन में मिला था
बोले-यह नाम हमारे पड़दादा जी का था
भाषा समझ से तुम्हारी परे
अवश्य ही कोई ठग या बहरूपिया हो
न आपको देखा और नाम भी न सुना
अब रुकना संभव न था
आगे चल गांव पर एक नजर डाल लूं
शायद कोई निशानी बची हो
जिनकी यादें अभी शेष हैं
बिजली-डिश टेलिफोन आदि के तार न थे
सड़कें लापता थीं
कंप्यूटर भी गायब हो चले थे
मात्र उनका जिक्र लोग कर रहे थे
अन्य देशों के समाचार नेता अभिनेताओं
से अलबत्ता बातें कर रहे थे
आधुनिक माने जाने वाले यंत्र के बिना
सब कुछ अजब-गजब था।।
साहस कर एक आदमी से बात की
बोला-हां इस नाम के आदमी इस गांव में थे
पर वह कबके परलोक सिधार गए
सुना था बड़े मिलनसार थे
रिस्तेदार तो रिस्तेदार होता ही है
अजनबी की भी दूध-घी से खातिरदारी करते थे
पर वह तो चौथी पीढ़ी के इनसान थे
तुम बात कब की कर रहे हो
आप उनके निकट की पीढ़ी के रिस्तेदार हो
इतने साल बाद अपनी ननिहार आये हो
आपकी खातिरदारी मैं करूंगा
और गांव को बदनामी से बचाऊंगा
ये तो इंटरनैट, रोबोट, सुपर कंप्यूटर के जमाने के युवा हैं
न जरूरत पुस्तकों की, न कभी हाथ से काम किया
जब स्वार्थ था कुछ पाने का
वह कब का खो गया है
भविष्य ही केवल बचा है
अपना-पराया न शेष है
यह २२वीं सदी है।
(०९-०२-१०)

1 comment:

  1. bahoot bahoot sunder
    jeevan aur kalpna ka adbhut smavesh
    aur kehne ke liye shabd nahi

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