Monday, September 20, 2010

उद्देश्य

ओम राघव
अधिकता ध्यान के अभ्यास से मन वासना शांत होते,
शरीर के निर्वाह के लिए पूर्व अभ्यास ही कारण बनाते
भोगरूपी अंकुर प्रारब्ध रूपी बीज से उत्पन्न होता,
बीज भी काल कर्म से शक्तिहीन होकर नष्ट होता।
मन और वासना जब नष्ट हो न शरीर संयोग रह पाता
स्वतः देह यात्रा का निर्वाह सुषुप्ति का आभास भर देता।
अंतःकरण समाधिस्थ होकर अल्प जगत व्यवहार रह पाता,
अविचल स्थिति बनकर विचार प्रकृष्टता से सुलभ होता
ज्ञानी उत्तम मध्यम जिसको ज्ञान, न जानना कुछ शेष रहता
जीवन में विचार शक्ति संगति और अच्छी शिक्षा का प्रभाव होता
सुखी रहे सर्वदा जानना जीव का यही उद्देश्य रहता।
(३-०९-१०)

3 comments:

  1. बहुत सुन्दर सार्थक जीवन दर्शन। धन्यवाद।

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  2. सटीक कल्याणकारी बात !!!

    आभार !!!

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  3. आपका ब्लॉग पसंद आया....
    कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-

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