Monday, November 21, 2011

क्रोध

बनता भयंकर शत्रु-शांति हर-संताप बढाता
मित्रता नाशक आँख वाले को अँधा बनता

भले बुरे का विवेक भी क्रोध ही नष्ट करता
आपसी प्रेम का नाशक, क्षय धर्म का करता

क्रोध की आग में जल कर बुद्धि नष्ट हो जाती
स्वयं भी जलता-दूसरे को दे संताप जलाती

वर्षों का संचित सुभ कर्म क्षणिक क्रोध हर लेता
मूरखता ही प्रथम इसका कर्म बन जाता

न करे क्रोध गर मानव-तो महान हो जाता
समय पर बिफल कर दे, वह विचार ज्ञान बन जाता

स्मरण परमात्मा का हो-इस का नाश कर देता
विनम्रता सीख ले मानव, त्रोहित क्रोध हो जाता

समस्याएँ अनेक जीवन की, स्वयं का क्रोध करता है
विगत क्रोध से रहे मानव , सागर संसार तरता है

क्रोध से दूर रहना ही विनम्रता-सदाचार सिखलाये
दूरियां जो बन चुकी अबतक-विगत क्रोध मिटाए

ओम राघव

10 comments:

  1. क्रोध से दूर रहना ही विनम्रता-सदाचार सिखलाये
    दूरियां जो बन चुकी अबतक-विगत क्रोध मिटाए

    krodh hi sari samsyaon ki jad hai

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  2. good one...

    keep it up...

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  3. ख्याल बहुत सुन्दर है और निभाया भी है आपने उस हेतु बधाई
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  4. बेहतरीन पंक्तियां ..

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  5. bahut hi sundar lekha lika hai aapne, please keep it up.
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