Sunday, October 4, 2009

प्रकृति

-ओम राघव

कथित पीढ़ी या पूर्वज कपि बना मनुष्य
मानव बनाने में युगं से
मानव ही ऊर्जा व बुद्धि का प्रयोग करता रहा है
प्रकृति तत्वों का ही सत्व निकाल
या आगे पीछे कर अनेक बदलाव करता रहा है
तत्व न कई निर्मित किया
प्रकृति तत्वं का ही रूप बदल
अविष्कार का नाम देता रहा है
घर में बैठ या आकाश में उड़
सारे विश्व को इंटरनेट से जोड़
एक लड़ी में भी पिरोता रहा है
समाज विश्व हित कार्य कर
देवता बनता रहा है
प्रकृति एक बीज से अनेक वृक्ष फूल फल दे
मानव से अनन्त गुना कर्म कर
विशाल-हृदय का स्वरूप दिखलाती रही है
ऊर्जा प्रचंड पृथ्वी पहाड़ नर्म सबको हिला
अपनी शक्ति दिखलाती रही है
मात्र भाव से हर जीव का ध्यान कर
पर हित करना सिखाती रही है
अपने पास न रख एक से अनेक कर
सम्पदा लुटाने क सदा तत्पर रही है
सद्-गुरु मातृहृदया प्रकृति बताती कैसी हो श्रेष्ठता
मानव को सदा से सिखाती रही है
पर मानव सीखता कितना? वह तो बस
प्रकृति का दोहन ही करता रहा है
अपने दम्भ का प्रदर्शन कर अणु-परमाणु बम बना
सारी सृष्टि को आघात ही देता रहा है
वृक्ष काट पहाड़ काट कारखाने चिमनी युक्त से
पर्यावरण प्रदूषित करता रहा है
प्रकृति के जीव शेर चीते रीछ आदि मार
पर्यावरण को आघात ही करता रहा है
पर्यावरण प्रदूषित मौसम परिवर्तन होने लगे
प्रकृति की नाराजगी भी चल पड़ी
झेलना मानव जाति को संभव नहीं
प्रकृति से विपरीत चलकर
बोझ आपदाओं का हम भोगते रहेंगे
क्या छोड़ पायेंगे विरासत में समझना सरल है

अविष्कार ही बेकार होंगे
समझ मानव सोच में कर ले सुधार
आने वाली पीढ़ी की फिक्रकर
कोसती तुमको रहेगी, बचा जो थोड़ा सा आस्तित्व उसका
बाहरी प्रकृति का ही मत ध्यान कर
अपनी आंतरिक प्रकृति का सुधार कर
स्वहित से अधिक परहित का साधकर
प्रकृति के कोप से मानव जाति
सारी सृष्टि को बचाना चाहती है
स्व प्रकृति को सुंदर भावना से भर।

(०३-०९-०९)

5 comments:

  1. मात्र भाव से हर जीव का ध्यान कर
    पर हित करना सिखाती रही है
    अपने पास न रख एक से अनेक कर
    सम्पदा लुटाने क सदा तत्पर रही है
    सद्-गुरु मातृहृदया प्रकृति बताती कैसी हो श्रेष्ठता
    मानव को सदा से सिखाती रही है
    bahut hi nek aur sunder kathan

    ReplyDelete
  2. अपने दम्भ का प्रदर्शन कर अणु-परमाणु बम बना
    सारी सृष्टि को आघात ही देता रहा है
    वृक्ष काट पहाड़ काट कारखाने चिमनी युक्त से
    पर्यावरण प्रदूषित करता रहा है
    प्रकृति के जीव शेर चीते रीछ आदि मार
    पर्यावरण को आघात ही करता रहा है
    bahut hi marmik satya

    ReplyDelete
  3. vah vah dada ji ki kavitaon ka kya kehna

    ReplyDelete