Saturday, January 23, 2010

साक्षात्कार

ओम राघव
चेतन सत्ता नियामकरूप से कार्य करती
जज्बात के मूल में मैल आक्षेप, आवरण
हैं दोष मन के व्यवधान बनते ब्रह्म के साक्षात्कार में
जन्म-जन्मांतरों में किए कर्म
शुभ या अशुभ- बनती मन की वासना
चित्त की चंचलता, आक्षेप मन का
आवरण संस्कार माया का बना
निष्काम भाव से सद्आचरण
साफ कर सके मन के मैल को
चित्त की चंचलता हरे, प्रभु का निरंतर संस्मरण
आदत जिसकी पड़ सके,
प्रभु के प्रति अनुराग ही, समीप ब्रह्म के ला सकेगा
श्रवण स्वाध्याय, पठन से
रूप गुण का ज्ञान अवश्य हो सकेगा
व्यवधान सारे दूर होंगे
आनन्द परमानंद मिलता पाकर परमात्मा को
अवस्थित सदा अंतर हृदय के साथ ही
स्वयं वह भी निरंतर याद करता
करना सक्षात्कार जिसका।।

३१-१२-०९

2 comments:

  1. Sahi ...ekdam sahi....tan man soch vichaar,sabko swachchh rakh prabhu ko yadi hriday me sthaan diya jaay to we awashy hee hriday me awasthit ho jaate hain...

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  2. bilkul saty
    ek parmatma hi saty hai wo hi sath deta hai
    isliye uska smran bahut jaruri hai

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