बनता भयंकर शत्रु-शांति हर-संताप बढाता
मित्रता नाशक आँख वाले को अँधा बनता
भले बुरे का विवेक भी क्रोध ही नष्ट करता
आपसी प्रेम का नाशक, क्षय धर्म का करता
क्रोध की आग में जल कर बुद्धि नष्ट हो जाती
स्वयं भी जलता-दूसरे को दे संताप जलाती
वर्षों का संचित सुभ कर्म क्षणिक क्रोध हर लेता
मूरखता ही प्रथम इसका कर्म बन जाता
न करे क्रोध गर मानव-तो महान हो जाता
समय पर बिफल कर दे, वह विचार ज्ञान बन जाता
स्मरण परमात्मा का हो-इस का नाश कर देता
विनम्रता सीख ले मानव, त्रोहित क्रोध हो जाता
समस्याएँ अनेक जीवन की, स्वयं का क्रोध करता है
विगत क्रोध से रहे मानव , सागर संसार तरता है
क्रोध से दूर रहना ही विनम्रता-सदाचार सिखलाये
दूरियां जो बन चुकी अबतक-विगत क्रोध मिटाए
ओम राघव
Monday, November 21, 2011
Tuesday, November 8, 2011
समय
' सदा रहेगा - सच गुजरा हुआ कल,
कसक उठता है - याद करते आज भी
समय - स्थान - सब, सब लोग दूर कहाँ चले गये
वह वर्तमान - कल बन' अनजान बन गया .
छूटे सभी जहाँ-तहां - यहाँ रहे कुछ वहां गये
कई जाकर न लौटे कभी
यही सब नहीं हो रहा निरंतर
साड़ी सृष्टी में
कहाँ - कैसा ? प्रेम मिटता - द्वेष करता -
अभावों से घिरी नहीं है क्या - ये सारी दुनिया ?
उसमें ही रमता रहा - साडी जिन्दगी मन,
समय के फेर का ही नाम क्या दुनिया,
समझना कठिन - और कठिनतर होता गया
समय का भेद कब कैसे मिटे ?
समझना आगया --
छण का गुजरना - पहर दिन - वर्ष -
युग का समझना -
आसान हो जाये
इति ओम राघव
कसक उठता है - याद करते आज भी
समय - स्थान - सब, सब लोग दूर कहाँ चले गये
वह वर्तमान - कल बन' अनजान बन गया .
छूटे सभी जहाँ-तहां - यहाँ रहे कुछ वहां गये
कई जाकर न लौटे कभी
यही सब नहीं हो रहा निरंतर
साड़ी सृष्टी में
कहाँ - कैसा ? प्रेम मिटता - द्वेष करता -
अभावों से घिरी नहीं है क्या - ये सारी दुनिया ?
उसमें ही रमता रहा - साडी जिन्दगी मन,
समय के फेर का ही नाम क्या दुनिया,
समझना कठिन - और कठिनतर होता गया
समय का भेद कब कैसे मिटे ?
समझना आगया --
छण का गुजरना - पहर दिन - वर्ष -
युग का समझना -
आसान हो जाये
इति ओम राघव
" संत "
संत सुख-सुविधा त्याग सिखाते उपाय -
क्या होती सुख - सुविधा समाज की
प्रेरणा स्त्रोत बनते संसार की -
संतोष - नम्रता - त्याग शांति की
प्रति मूर्ति बनकर
सिखाते जीवन जीने की कला
परिवार में रहने का ढंग सिखाते
महकते स्वयं विश्व - समाज महकाते
सिखाते छमा अन्य को करना
चलते फिरते तीर्थ संत होते
स्थान - जहाँ होता पदार्पण उनका
बसंत लहलहा उठता -
संत न आते जगत में
हाहाकार होता चरों ओर-
और जल मरता स्वयं ही संसार
आते सदा संत - मार्ग दर्शन करने -
समाज का
उदेश्य आने का संसार में
भली - भांति समझाते -
छूट सके भवसागर से
तथ्य और ज्ञान समझाते
इति ओम राघव
क्या होती सुख - सुविधा समाज की
प्रेरणा स्त्रोत बनते संसार की -
संतोष - नम्रता - त्याग शांति की
प्रति मूर्ति बनकर
सिखाते जीवन जीने की कला
परिवार में रहने का ढंग सिखाते
महकते स्वयं विश्व - समाज महकाते
सिखाते छमा अन्य को करना
चलते फिरते तीर्थ संत होते
स्थान - जहाँ होता पदार्पण उनका
बसंत लहलहा उठता -
संत न आते जगत में
हाहाकार होता चरों ओर-
और जल मरता स्वयं ही संसार
आते सदा संत - मार्ग दर्शन करने -
समाज का
उदेश्य आने का संसार में
भली - भांति समझाते -
छूट सके भवसागर से
तथ्य और ज्ञान समझाते
इति ओम राघव
Sunday, February 20, 2011
निदान
ओम राघव
आया नहीं कहीं से फिर जाना कहां?
प्रश्न से स्वयं ही उलझ रहा
अहसास मूर्छा का खेल
छोड़ एक जिंदगी...
दूसरी ढोता रहा
असहज रहा सदा मूर्छा से जागना
अवश्य तभी एक वाणी
क्षितिज से दुलारती थी
क्यों न अब जागकर
शरण में उसकी आ रहा
अस्तित्व मेरा मूर्छा मेरी
पुकारना किसका
समझ कुछ आने लगा है
शरण था, शरण हूं
शरण में आगे रहूंगा
स्वंय से कहना
स्वयं से कहता रहूंगा
सुनने वाला दूसरा कोई नहीं
मोहताज कल्पना के खेल का
अब न रहूंगा
याद कैसी और किसकी?
चक्करों में क्यों पड़ूंगा?
समस्या स्वयं, समाधान स्वयं
निदान भी खुद ही करूंगा।
आया नहीं कहीं से फिर जाना कहां?
प्रश्न से स्वयं ही उलझ रहा
अहसास मूर्छा का खेल
छोड़ एक जिंदगी...
दूसरी ढोता रहा
असहज रहा सदा मूर्छा से जागना
अवश्य तभी एक वाणी
क्षितिज से दुलारती थी
क्यों न अब जागकर
शरण में उसकी आ रहा
अस्तित्व मेरा मूर्छा मेरी
पुकारना किसका
समझ कुछ आने लगा है
शरण था, शरण हूं
शरण में आगे रहूंगा
स्वंय से कहना
स्वयं से कहता रहूंगा
सुनने वाला दूसरा कोई नहीं
मोहताज कल्पना के खेल का
अब न रहूंगा
याद कैसी और किसकी?
चक्करों में क्यों पड़ूंगा?
समस्या स्वयं, समाधान स्वयं
निदान भी खुद ही करूंगा।
Saturday, February 12, 2011
समस्या
जीवन का आभास ही सबूत है
समस्या के आस्तित्व का
समस्या से रहित जीवन नहीं होता
समस्या सुलझाने की चाह होती है
प्रस्तुत समाधान करती महत्वाकांक्षा भी
कभी बन जाती अपनी समस्या
दूसरा नहीं होता कारण
समस्या के प्रसूत का
प्रेरणस्रोत मूलरूप से हम उसका
दोष पर दूसरों को देते रहते सदा
शरीर और कर्म का सद्पयोग होना चाहिए
सहनशक्ति स्नेह व सहयोग के साथ
सटीक निर्णय की त्वरित शक्ति चाहिए
नहीं कम गंभीरता भी समाधान जैसा चाहिए
होगा समस्या का अवश्य निदान
अपेक्षित कथित तत्व होने चाहिए।
ओम राघव
15-11-2010
Wednesday, October 6, 2010
ऐसे अनेक रामदेव बाबा चाहिए
ओम राघव
अब नहीं लगते
उबाऊ, भड़काऊ, कुत्सित, अश्लील
आए समाचार दैनिक प्रिंट या इलेक्ट्रानिक मीडिया से
कभी कहते थे
घृणित फूहड़ भड़काऊ अश्लील नैतिकता से परे
आंग्लदेशवासियों के पहनावे को
डूब गए हम कंठ तक कीचड़ में
पर नजर नहीं आती अश्लीलता
अशिष्ठ साहित्य में भी बल्कि कर रहे महिमामंडित
कहकर- समाज का दर्पण है साहित्य
यथार्थवाद की आड़ लेकर
नहीं थकते थे कभी कोसते जिनको
अपने युवा भी बढ़ावा दे रहे
अश्लील चित्रों को देखकर
लांघ गए हैं सभी सीमाएं
सारी तोड़कर आगे जाने का आधुनिक होने का
दावा कर रहे हैं
नई पीढ़ी उन्हीं का साथ देने आ गई है
परिणाम दिनरात ऐसा साहित्य दर्शन पेश करने का बन गया है
आचार उनका सीखते जिनसे वही सिखा रहे हमको जिन्हें हम कोसते थे
उन्होंने भारतीय संस्कृति को सीख करकर लिया सुधार अपना
हम उसका अनुकरण कर रहे हैं
जो छोड़ उन्होंने दिया
क्या हमें छोड़ना आदर्श अपना
नैतिक परंपरा साथ देकर अश्लीलता का अपनी पीढ़ी का कितना
नुकसान हम कर रहे?
पैसा-शौहरत केवल बनी आधार जिनका
वे सब ऐसा करेंगे जिन्हें अपने परिवार
देश मानव जाति का हित बने
ऐसे अनेक रामदेव बाबा चाहिए।
(१३-०९-१०)
अब नहीं लगते
उबाऊ, भड़काऊ, कुत्सित, अश्लील
आए समाचार दैनिक प्रिंट या इलेक्ट्रानिक मीडिया से
कभी कहते थे
घृणित फूहड़ भड़काऊ अश्लील नैतिकता से परे
आंग्लदेशवासियों के पहनावे को
डूब गए हम कंठ तक कीचड़ में
पर नजर नहीं आती अश्लीलता
अशिष्ठ साहित्य में भी बल्कि कर रहे महिमामंडित
कहकर- समाज का दर्पण है साहित्य
यथार्थवाद की आड़ लेकर
नहीं थकते थे कभी कोसते जिनको
अपने युवा भी बढ़ावा दे रहे
अश्लील चित्रों को देखकर
लांघ गए हैं सभी सीमाएं
सारी तोड़कर आगे जाने का आधुनिक होने का
दावा कर रहे हैं
नई पीढ़ी उन्हीं का साथ देने आ गई है
परिणाम दिनरात ऐसा साहित्य दर्शन पेश करने का बन गया है
आचार उनका सीखते जिनसे वही सिखा रहे हमको जिन्हें हम कोसते थे
उन्होंने भारतीय संस्कृति को सीख करकर लिया सुधार अपना
हम उसका अनुकरण कर रहे हैं
जो छोड़ उन्होंने दिया
क्या हमें छोड़ना आदर्श अपना
नैतिक परंपरा साथ देकर अश्लीलता का अपनी पीढ़ी का कितना
नुकसान हम कर रहे?
पैसा-शौहरत केवल बनी आधार जिनका
वे सब ऐसा करेंगे जिन्हें अपने परिवार
देश मानव जाति का हित बने
ऐसे अनेक रामदेव बाबा चाहिए।
(१३-०९-१०)
Friday, September 24, 2010
सहनशक्ति
ओम राघव
परमार्थ के मार्ग में जीव को
उतना बल मिलेगा
सहन शक्ति का शरीर मन में
जितना संबल बनेगा
दुखी लाचार का निष्काम भाव से
जीवन का निर्वाह होगा
कर्म (वैसा) श्रद्धा सहनशक्ति अहंकार
शून्य का वाहक बनेगा
जाति धर्म की खातिर बलिदान करे
आदर का भागी बनेगा
भाईचारा विश्व दृष्टिकोण सर्व सुख की
चाह का आधार होगा
पाप से कलुषित मन सुस्रजन की बात
भला कैसे करेगा
ज्ञानेंद्रियां भी न सहायक आत्मानुभूति
कैसे हो सके
परमपिता परमात्मा विद्यमान मुझ में
और आप में भी
सहन शक्ति से पारम्भ होता
आसान प्रत्याहार भी
सरल राह प्रारंभ
सहनशक्ति से करना पड़ेगा
खुल सकेंगे ज्ञानचक्षु
बाहर भीतर से शुद्ध तो होना पड़ेगा।
(०९-०९-२०१०)
परमार्थ के मार्ग में जीव को
उतना बल मिलेगा
सहन शक्ति का शरीर मन में
जितना संबल बनेगा
दुखी लाचार का निष्काम भाव से
जीवन का निर्वाह होगा
कर्म (वैसा) श्रद्धा सहनशक्ति अहंकार
शून्य का वाहक बनेगा
जाति धर्म की खातिर बलिदान करे
आदर का भागी बनेगा
भाईचारा विश्व दृष्टिकोण सर्व सुख की
चाह का आधार होगा
पाप से कलुषित मन सुस्रजन की बात
भला कैसे करेगा
ज्ञानेंद्रियां भी न सहायक आत्मानुभूति
कैसे हो सके
परमपिता परमात्मा विद्यमान मुझ में
और आप में भी
सहन शक्ति से पारम्भ होता
आसान प्रत्याहार भी
सरल राह प्रारंभ
सहनशक्ति से करना पड़ेगा
खुल सकेंगे ज्ञानचक्षु
बाहर भीतर से शुद्ध तो होना पड़ेगा।
(०९-०९-२०१०)
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